Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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परिशिष्ट तित्या' गोयमा! अरहा ताव निअमा तित्थंकरे, तित्थं पुण चाउवण्णो संघो, तं जहासमणाओ, समणीओ, सावयाओ सावियाओ।" इति श्री भगवती वीसमा शतक मां आठमा उद्देशानइ विषइ।"
घम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पत्रत्ता, तं जहा- वायणा, पड़िपुच्छणा, परियट्टणा, धम्मकहा। इति श्री भगवती शतक २५, उद्देसु सातमु ते विषइ।
श्री महावीरइं सोमिल ब्राह्मणनई जे यात्रा कही ते लिखीइ छइ- “कहएणं भन्ते! जत्ता? सोमिला! जं मे तवनियमसंजमसज्झायजूसणावस्सगसमाहीएसु जोगेसु जयणा, से तं जत्ता।” इति श्री भगवतीशतक १८ उद्देसु दसमु।
श्री थावच्चापुत्त अणगारई जे यात्रा कही, ते लिखीइ छइ-“तएणं ते सुए थावच्चापुत्तं एवं वयासी-किं भन्ते जत्ता? सुआ! जणणं मम नाणदंसणचरित्ततवसंजममाइएहिं जोएहिं जयणा से तं जत्ता।” इति श्री ज्ञाताधर्मकथांगे अध्ययन पांचमइ। एह त्रेपनमु बोल। ५४. चउपनमु बोल
___ हवइ चउपनमु बोल लिखीइ छइ। तथा फूल माहिं जे जीव श्री वीतरागे कहिआ ते लिखीइ छइ
पुप्फा जलया य थलया, बेंटबद्धा य णालबद्धा य। संखेज्जमसंखेज्जा, बोधव्वणंतजीवा य ।। जे केइ नालिआबद्धा पुष्फास्संखेज्जविअ भणिआ। निहुआ अणंत जीवा, जे अ वणे तहापिहा।। पुप्पफलं कालिंगं, तुंबं तंत सेलवालुकं । घोसालयं पंडोल, लिंडूअं चेव तेरूसं ।। बिटं मंसं कड़ाए, एयाइं हवंति एगजीवस्स । पत्तेअं पत्तीइस, केसर सरमकमिंजा।।
एह चउपनमु बोल। ५५. पंचावनमु बोल
हवइ पंचावनमु बोल लिखीइ छइ। तथा केतला एक इम कहइ छइं- धर्म कर्तव्य की, घटइ नहीं, ते ऊपर लिखीइ छइ. "तएणं थावच्चापुत्ते सुदंसणं एव वयासी- तुज्झ एणं सुदंसणा! किं मूलए धम्मे पण्णत्ते?" अम्हाणं देवाणुप्पिआ सोअमूल धम्मे पण्णत्ते, जाव सग्गं गच्छंति।" तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणं तं एवं वयासी- "सुदंसणा! से जहाणामए केइ पुरिसे एगं मह रुहिरकयं वत्यं रुहिरेण चेव घोवेज्जा, तए णं सुदंसणा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेण चेव पक्खालिज्जमाणस्स अत्थि काईसोही?" "णो
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