Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 537
________________ ५१८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास तत्थिमा तइया भासा, जं वदित्ताडणुतप्पती । जं छन्नं तं न वत्तव्वं,एसा आणा णिअंठिआ । इति श्री सूअगडांग अध्ययन नवमा मध्ये गाथा २६ । इस घणाइ अधिकार छइं, दयाई धम्मं सूत्रे घणइ ठामि कह्या छई । तथा केतलाएक इम कहई छई, जे धर्म आज्ञाइं कहीइ। अम्हारइ आज्ञा गाढ़ी प्रमाण। डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो-जे श्री वीतराग नी आज्ञा ते तउ पंच महाव्रत अनइ बार व्रत तथा बार भिक्षुप्रतिमा। इग्यार श्रावक नी प्रतिमा इत्यादिक बोलनं पालवउं ते श्री वीतराग नी आज्ञा। ते तु एकांत दयामई छइ। पणि तेह मांहिं कांई हिंसा नथी। तथा कोइ एक इम कहइस्यइ जे साधुनइं आहार नीहार करतां कांइ कांइ सावध लागइ छइ। तेहना उत्तर प्रीछ । ते तउ अशक्य-परिहार, अनाकटि छइ। अनइ ते पणि अशक्य परिहारइं अनइ अनाकुटिइं जे कांई सावध लागइ, ते सर्व आलोइ निंदइ। एतावता श्री सिद्धान्त मांहिं प्रांत आलावी, निंदवी छइ। पणि श्री सिद्धान्त मांहिं हिंसा किहां अनुमोदवी नथी। तथा श्री वीतरागई प्रश्नव्याकरण मांहि श्री जीवदयाइं सम्यक्त्व नी आराधना कही तथा बोधि कही, तथा निर्मली दृष्टि कही, तथा पूजा कही। एहवा घणां घणां बोल तथा घणां उदाहरण कह्या छइं। ते अधिकार लिखीइ छइ- “तत्थ पढ़मं अहिंसा जा सा सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स भवति। दीपो ताणं सरणं गति पइट्ठा, निव्वाणं नेव्युइं समाहि संती, कित्ती कंत्ती रइ अविरती सुअंगतित्ती, दयाविमुत्ती खंती सम्मत्ताराहणा, महती बोही बुद्धा धिति, समिद्धी रिघी विधी तिती पुट्ठी नंदी भद्दा विरुद्धी लद्धी विसुद्ध दिट्ठी, कल्लांणं मंगलं पासाउ विभूति, खासिद्धावासो, अणासवो केवलीण ठाणं सिव समि असील, संजमोत्ति अ सीलधरो, संपरे अ गुत्ती, ववसाउअस्स तोयजणो, आयतणजयणमप्पमाओ, आसासो विसासो अभउ सव्वस्स य वियमाधाओ चोखपवित्तासुती, पूआ, विमलपभासाय, निम्मलरत्ति, एवमादीणि निययगुणनिम्मियाइं पज्जवनामाणि होति अहिंसाभगवतीए।" ए भगवंतइं प्ररूपी। “सा भगवती अहिंसा । जा सा भीयाणं पि वसणा, पक्खीणं पिव गयणं तिसियाणं पिव संलिलं, खुहिआणं पिव असणं, समुद्दमज्जे पोतवहणं चउप्पयाणं व आसमपयं दुहट्ठियाणं व ओसहिबलं, अटवीमज्जे व सत्थगमणां, एतो विसिठ्ठतरिगा अहिंसा । जा सा पुढविजलअगणिमारुअवणप्फति-बीज-हरिय जल-चर थलचर-तसथावरसव्वभूअखेमकारी। एसा भगवती अहिंसा।" एहवी जीवदया श्री वीतरागई सार प्रधान कही। एहवी जीवदया श्री वीतरागना मार्गनई विषइ छइ। पणि अनेरे ठामि नथी। जेहनी मिथ्यामति छइ, तेहनई कहण छइ, पणि रहण नथी। एह सतरमु बोल । १८. अढारमु बोल. हवइ अढारमु बोल लिखीइ छइ- तथा श्री ठाणांग मांहिं इम कहिउं- “चउविहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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