Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 526
________________ परिशिष्ट ५०७ वीतरागे जिका अधिकी नदी उतरइ तेहनइ सबलउ कां नहीं कहइ? तथा जे धर्म कर्तव्य छइ ते बहू-बहू कीजइ, अनइ बल करीनइ अनुमोदीइ, अनइ नदी तु बहु उतरवी नहीं। अनइ उतरिया पछइ अनुमोदइ पणि नहीं : जे विराधना हुई ते निंदइ गर्हई तथा साधुनई विहार करतई केहइक वरिसइं, तथा केहइकइ मासई तथा केहई कई दिवसि क्षेत्रविशेषई तथा देशविशेषज्ञ नदी, नावी तथा न उतरिउनुं कांई साधु नदी अणउतरिआनउ पश्चात्ताप तउ न करइ। पणि प्रतिमानउ पूजणहार केहइ कइ मासि केहइ कई दिवसि कारणविशेषई प्रतिमा पूजी न सकइ, तु पश्चात्ताप करइ, इम चीतवइ 'जे माहरइ पोतइ पाप जे मई प्रतिमा न पूजाणी।' पणि साधु नदी अणउतरइ इम न चीतवइ जे- माहरइ पोतइ पाप जे मइ नदी न उतराणी।" जिको प्रतिमा ऊपरि नदीनुं दृष्टान्त मांडइ छइ ते सूत्र विरुद्ध दीसइ छइ। ते एतला भणी जे प्रतिमाना पूजनहारनइं प्रतिमा नी पूजा अनुमोदणनई खातइ छड्। अनइ साधुनई नदीनुं उतार निंदवानइ खातइ छइ तथा हवइं जेणइं खातइ नदी छइ ते प्रीझ्या । नदी अशक्यपरिहार छइ, अनइ अनाकुटि छइ ते अनाकुटि श्री समवायांग मध्ये एकवीसमइ समवायइ छइ। विवेकी हइ ते विचारी जोज्यो । एह छठू बोल । ७. सातमु बोल. व हवइ सातमु बोल लिखिइ छइ। तथा सिद्धान्त मांहिं तुंगिया नगरी ना तथा आलंभिआ नगरी नां तथा सावत्थी नगरी ना प्रमुख श्रावक गाढ़ा घणां ना अधिकार दीखइ छई, तथा कुणइ श्रावकई प्रतिमा घड़ावी तथा भरावी तथा प्रतिष्ठावी तथा पूजी तथा जुहारी किहां दीसती नथी । सहू सरवालइ मनुष्य लोक मांहिं एक द्रुपदीइं पूजी दीसइ छइ। ते पूजावानुं प्रस्ताव कीहु? सिद्धान्त न अर्थ तुं नय उपरि चालई । ए तु नय संसार ना आरणकारण नु दीसइ छइ जे परणती बेलाई पूजी। वली पुनरपि आखा भव मांहि द्रुपदीइं प्रतिमा पूजी कही नथी । जु मोक्ष नइ खातइ हुइ तो तु परणवा ना अवसरटाली वली पूजइ। पुण ए मोक्ष नइ खातइ नथी दीसती। अनइ जे वास्तुकशास्त्रे तथा विवेकविलास मांहिं प्रतिमा घड़ाववा भराववानी विधि बोली, तथा जे हवड़ां जे नवी प्रतिमा भरावइ तथा घड़ावइ, ते घड़ावणहार तेहनई पूछइ- “मुझनई प्रतिमा घड़ाववानी भराववानी तथा प्रतिष्ठाववानी विधि कहउ।' तेहइ जोतां संसारनइं हेतुइं दीसइ छ।। ते किम? तो लिखीइ छइ- “एगवीस तित्थयरा संतिकरा हुंति गेहेसु ।" जे एकवीस तीर्थकर नी प्रतिमा घरे मांडी शांति करइ। पणि त्रिणि तीर्थंकर नी प्रतिमा घरि न मांडइ। जु मोक्ष नइ खातइ हुइ, तो त्रिणि तीर्थकर घरि मांड्या शान्ति सिंइं न करइं? तीर्थंकर तु चउवीसइ मोक्षदायक छड्। जेणइ इम कहिउं “त्रिणि तीर्थंकर घरि न मांडीइ, जेह भणी तेहनइं बेटा न हवा, तेह भणी घरि न मांडीइ।" एणइ कारणई संसार नई हेतुहं दीसइ छइ। पणि मोक्ष नइ खातइ नथी। तथा जि का नवी प्रतिमा भरावइ, तेहनी रासि पूछीनइ तीर्थंकर नी रासि संघाति मिलतां विशेष जोइइ। इम करतइ जे तीर्थंकर संघातई नाड़ीवेध पड़इ, तथा बीआबारुं पड़इ, तथा नवपंचक पड़इ, तथा षडाष्टउं पड़इ इत्यादिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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