Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 527
________________ ५०८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास योग उपजइ, ते प्रतिमा भरावइ नहीं, घरि मांडइ नहीं, एहइ जोतां संसार नइ हेतुई दीसइ छइ । तथा वली जिहां प्रतिमा प्रतिष्ठा इच्छइ तिहां आरणकारण घणां करइ छईं । तेह हेतुई जोतइं पणि संसार नई खातई दीसइ छइ । तथा वली जे जिणदत्तसूरिनउ कीधउ विवेकविलास तेह मांहिं प्रतिमा घड़ाववानी विधि बोली छइ । तिहां इम कहिउं छइ - "जु प्रतिमा नुं मुख रौद्र पड़इ, तथा बीजा अवयव पाडुआ पड़ई, तर ते प्रतिमां ना करावणहार नई घणी ज हाणि बोली छ । “पुत्र नी हाणि तथा मित्रनी हाणि तथा धननी हाणि, तथा शरीर नी हाणि " - इत्यादिक घणां दोष बोल्या छई । एहइ ठाम जोतां संसार हेतुई दीसइ छइ, तीर्थंकर तउ कहइनई ज्या न करई । डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो । -- तथा जिहां सूरिआभई प्रतिमा पूजी तिहां पणि मोक्षनइं खातइ पूजी नथी। एतला भणी जिहां- जिहां श्री वीतराग वांद्या तिहां एहवा कह्यां- " जे खेयण्णे पेच्चा हिआए सुहाए" - इत्यादि कहतां परभव जाणिवउ । अनइ जिहां प्रतिमा पूजी तिहां "पूव्विं पच्छा हिआए सुहाए’– इत्यादि कयुं । एह अधिकार जोतां मोक्षनइ खातइ नहीं । जु प्रतिमानई अधिकारई “पेच्चा” कह्युं हुतउ वीतराग वांद्या अनइ प्रतिमा पूजी सरीखुं थाउत । ईख्यां तउ 'वीतराग वांद्या' अनइ 'प्रतिमा पूजी' विचालइ शब्द ना फेर तउ गाढ़ा सबला दीसई छ । जे डाहु हुई ते विचारज्यो । तथा केतलाएक इम कहइ छइ, सम्यग्दृष्टी टाली कोई 'नमोत्थुणं' इत्यादि न भणइ। ते श्री अनुयोगद्धार मांहिं इम कह्युं - 'जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायणिरणुकंपा हया इव उद्दामा, गया इव निरंकुसा, घट्टा मट्टा तुप्पोट्टा, पंडुरपट्टपाउरणा, जिणाणं अणाणाए सच्छंद विहरिऊणं उभओकालमा वस्सगस्सउ वस्सगस्स उवट्ठति', तु जोइइ लोकोत्तर द्रव्यावश्यक ना करणहार दिन प्रतिइं वार बि आवश्यक करई तेह मांहिं "नमोत्थुणं" कहइ, अनइ ते वीतरागई समकितदृष्टी न कहिया । तउ जोउ नई, जि कोई इम कहइ छइ जो 'सम्यग्दृष्टी टाली नमोत्थुणं को न कहइ' ते वात सूत्रविरुद्ध दीसइ छइ। तथा श्री नंदिसूत्र मांहिं इम कह्युं - जे चउद पूर्व ना भणणहार नई मति समी हुइ, जाव दस पूर्व ना भणनाहारनइं पणि मति समी हुई, अनइ नव पूर्व ना भणन हारनई पणि मति समी हुइ, अनइ मिथ्या पणि हुइ ।” एतलइ णमोत्थुणं आदिई देइनइ ग्रन्थ घणु भणइ, पणि मति मिथ्याइ हुइ, अनइ समी पणि हुइ । तु इणई मेलई जोतां जे इम कहइ छइ जे सम्यग्दृष्टी टाली अनेरा 'नमोत्थुणं' न कहइ ए बात शास्त्रस्यु' विरुद्ध दीसइ छइ । तथा प्रत्यक्ष षमणा प्रमुख घणाई 'नमोत्थुणं' कहई छई, ते कांई समकितदृष्टि जाण्या नथी जे डाहु हुई विचारी जोज्यो । तथा केतलाएक इम कहईं छई जे गणधरे इ कां कह्युं जे “जिणघरे” “जिणपड़िमा” तथा "धूवं दाऊण जिणवराणं ?" तेहना उत्तर प्रीछउ - जे जगमांहि जेहना नाम जेहवां प्रवर्त्ततां हुए गणधर पणि तेहनुं अधिकार आविई तेहनई तेहवइ नामइ कहइ । जिम श्री ठाणांग मध्ये त्रीजइ ठाणाइ गणधरे इक कह्युं जे 'भरहे वासे तओ तित्था पण्णता' - मागहे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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