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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास आपके पिताजी ने दीक्षा ग्रहण की। तदुपरान्त वि०सं० २००० में आपकी माताजी ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। माता-पिता के दीक्षित हो जाने के पश्चात् आपके मन में भी वैरागय की भावना जगी, फलत: वि०सं० २००२ के फाल्गुन मास में जब मुनि श्री कल्याणऋषिजी हैदराबाद में विराज रहे थे, आपने दीक्षा धारण कर ली। दीक्षोपरान्त आपने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया तथा ति०र० स्थान० जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड और पाथर्डी बोर्ड की 'जैन सिद्धान्त विशारद' की पीरक्षायें उत्तीर्ण की।
दौलतऋषिजी की शिष्य परम्परा मुनि श्री प्रेमऋषिजी
आपका जन्म कब और कहाँ हुआ, आपके माता-पिता कौन थे, आपकी दीक्षा कब हुई? आदि की जानकारी नहीं मिलती है। इतना ज्ञात होता है कि आपने मुनि श्री दौलतऋषिजी की निश्रा में दीक्षा ग्रहण की थी। मालवा, मेवाड़, मारवाड़ आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। आपके तीन शिष्य हुये- मुनि श्री फतहऋषिजी, मुनि श्री चौथऋषिजी
और मुनि श्री रत्नऋषिजी। मुनि श्री रत्नऋषिजी (छोटे)
आपका जन्म कब और कहाँ हुआ, आपके माता-पिता का नाम क्या था?आदि की जानकारी नहीं मिलती है। इतना ज्ञात होता है कि आपने मुनि श्री प्रेमऋषिजी की नेश्राय में मुनि श्री दौलतऋषिजी के मुखारविन्द से दीक्षा ग्रहण की थी। वि० सं० १९८२ में मुनि श्री चौथऋषिजी के साथ आप दक्षिण महाराष्ट्र में विराजमान थे। पूना चातुर्मास के बाद आपने उनसे पृथक् विहार कर औरंगाबाद चातुर्मास किया। वहीं आप स्वर्गस्थ हो गये। आपकी रचनाओं में 'चम्पक चरित' उल्लेखनीय है। मुनि श्री मोहनऋषिजी
आपका जन्म वि०सं० १९५२ में गुजरात प्रान्त के कलोल नामक स्थान में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती दिवालीबाई और पिता का नमा श्री मगनलाल भाई था। १४ वर्ष की अवस्था से ही आपने वैराग्यपूर्ण जीवन जीना प्रारम्भ कर दिया था। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी व धर्मशास्त्र के उच्च कोटि के विद्वान थे। वि०सं० १९७५ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन मुनि श्री दौलतऋषिजी के समीप इन्दौर में आप दीक्षित हुये। दीक्षोपरान्त आपने तीन वर्षों के अन्तर्गत 'दशवैकालिक', 'उत्तराध्ययन', 'आचारांग', 'सखविपाक' आदि ग्रन्थ कंठस्थ कर लिये थे। आपकी निश्रा में १३ व्यक्तियों ने दीक्षा ग्रहण की थी, किन्तु उनके नाम उपलब्ध नहीं हैं। गुजरात (काठियावाड़), मारवाड़, मध्यप्रान्त, खानदेश आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। अजमेर बृहत्साधु सम्मेलन में भी आपका योगदान सराहनीय रहा है। आपकी प्रमुख रचनायें हैं
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