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__ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास रमेशमुनिजी, श्री वीरेन्द्रमुनिजी, श्री धर्मेशमुनिजी, श्री गौतममुनिजी, श्री प्रशममुनिजी, श्री विनयमुनिजी, श्री अक्षयमुनिजी, श्री कान्तिमुनिजी, श्री अनन्तमुनिजी, श्री अशोकमुनिजी, श्री हेमगिरिमुनिजी, श्री निश्चलमुनिजी और श्री अचलमुनिजी। मुनि श्री घासीलालजी
आपका जन्म वि०सं० १९४१ में मेवाड़ के बनोल ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री प्रभुदत्त और माता का नाम श्रीमती विमलाबाई था। बचपन में आप सेठ भागचन्दजी की पुत्री जो जसवन्तगढ़ (राज.) में ब्याही हुई थी, के यहाँ कार्य करते थे। वहीं आप आचार्य श्री जवाहरलालजी के सम्पर्क में आये और वि०सं० १९५८ में गोगुन्दा में आपने उन्हीं के शिष्यत्व में दीक्षा ग्रहण की। किन्तु जब गणेशीलालजी आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये तब आप इस संघ से पृथक् हो गये। प्रारम्भ में आपकी बुद्धि मन्द थी, क्योंकि नवकार मंत्र याद करने में आपको १८ दिन लगे थे, किन्तु अभ्यास एवं प्रयत्न से आप उच्च कोटि के विद्वान बन गये। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मराठी, फारसी, उर्दू आदि भाषाओं का अध्ययन और आगमों का तलस्पर्शी परिशीलन किया। आपने ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेद और आवश्यकसत्र इन ३२ आगमों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखीं और हिन्दी, गुजराती में विस्तृत विवेचन के साथ अनुवाद भी किया। आपने 'कल्पसूत्र'
और 'तत्त्वार्थसत्र' की स्वतंत्र रचना भी की है। इनके अतिरिक्त आप द्वारा रचित ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं
'न्यायरत्नसार', 'न्यायरत्नावली', 'स्याद्वादमार्तण्ड टीका', 'प्राकृत व्याकरण', 'प्राकृत कौमुदी', 'आहत व्याकरण', 'श्री लालनाममाला कोष', 'नानार्थोदयसागर कोष', 'शिव कोष', 'सिद्धान्त ग्रन्थ-गृह', 'धर्म कल्पतरू', 'जैनागम तत्त्व दीपिका', 'तत्त्वदीपिका', 'लोकाशाह महाकाव्य', 'शान्ति सिन्धु महाकाव्य', 'मोक्षपद', स्तोत्र, स्तुतियों में- ‘जवाहिर गुण किरणावली', 'नव स्मरण', 'कल्याणमंगल स्तोत्र', 'महावीराष्टक', 'जिनाष्टक', 'वर्द्धमान भक्तामर', 'नागाम्बरमंजरी', 'लवजी स्वामी स्तोत्र', 'माणक्य अष्टक', 'पूज्य श्रीलाल काव्य', 'संकट मोचनाष्टक', 'पुरुषोत्तमाष्टक', 'समर्थाष्टक', 'जैन दिवाकर स्तोत्र', 'वृत्तबोध', 'सूक्ति संग्रह', 'तत्त्वप्रदीप' आदि।
वि०सं० २०२९ पौष अमावस्या के दिन अहमदाबाद में संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हुआ। आपके एक शिष्य मुनि श्री कन्हैयालालजी थे जो अच्छे विद्वान् थे।
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