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आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा
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राजकुंवरबाई बहुत दु:खित हुईं। जवाहरलालजी के अन्य सम्बन्धीजन ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया, किन्तु उन पर कोई प्रभाव न पड़ा। समझाने का परिणाम कुछ और ही निकला। श्री जवाहरलालजी ने अपने परिवारवालों को संसार की असारता के विषय में प्रतिबोधित कर दिया। फलत: वि० सं० १९२० पौष शुक्ला षष्ठी के उस ऐतिहासिक दिन को श्रीमती राजकुंवरबाई ने अपने तीनों पुत्रों श्री जवाहरलालजी, श्री हीरालालजी और श्री नन्दलालजी के साथ आचार्य प्रवर श्री शिवलालजी के पास आर्हती दीक्षा अंगीकार कर लीं । चारों भव्यात्यात्माओं को दीक्षित कर आचार्यप्रवर ने साध्वी राजकुंवरजी को साध्वी श्री नवलाजी की शिष्या तथा मुनि श्री जवाहरलालजी को मुनि श्री रत्नचन्द्रजी और मुनि श्री हीरालालजी व मुनि श्री नन्दलालजी को मुनि श्री जवाहरलालजी का शिष्य घोषित किया। दीक्षा के समय मुनि श्री जवाहरलालजी की उम्र १७ वर्ष की थी। मारवाड़, मेवाड़ आदि आपके विहार क्षेत्र रहे। आपने अपने ५१ वर्ष दस मास के संयमी जीवन में अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व से जैनधर्म की खूब धूम मचायी । वि० सं० १९७२ कार्तिक शुक्ला षष्ठी को मध्याह्न १२.१५ बजे सात दिन के संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हुआ। आपके पाँच शिष्य थे - मुनि श्री हीरालालजी, मुनि श्री नन्दलालजी, मुनि श्री माणकचन्द जी, मुनि श्री चैनरामजी और मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी । ज्ञातव्य है कि मुनि श्री जवाहरलालजी आचार्य श्री जवाहरलालजी से भिन्न हैं और उनसे वय में ३० वर्ष बड़े थे।
मुनि श्री हीरालालजी
आपका जन्म वि०सं० १९०९ आषाढ़ शुक्ला चतुर्थी को हुआ। आप मुनि श्री रत्नचन्दजी के सांसारिक द्वितीय पुत्र तथा मुनि श्री जवाहरलालजी के छोटे सहोदर थे । आपने मुनि श्री जवाहरलालजी के साथ ही आर्हती दीक्षा अंगीकार की थी। मारवाड़, मेवाड़ आदि आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। आप जैनागमों के अच्छे ज्ञाता थे। संस्कृत, प्राकृत, उर्दू, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं का भी आपको अच्छा ज्ञान था। वि० सं० १९७४ आश्विन कृष्णा द्वितीया को सायंकाल में आपका स्वर्गवास हो गया।
मुनि श्री नन्दलालजी
आपका जन्म वि० सं० १९९२ भाद्र शुक्ला षष्ठी को हुआ। आप मुनि श्री रत्नचन्द्रजी के तृतीय सांसारिक पुत्र थे तथा मुनि श्री जवाहरलालजी व मुनि श्री हीरालालजी के छोटे भाई थे । आपने भी अपनी माता, भाई श्री जवाहरलालजी व हीरालालजी के साथ दीक्षा ग्रहण की थी। दीक्षा के समय आपकी उम्र ८ वर्ष थी। दीक्षोपरान्त आप मुनि श्री चौथमलजी के सान्निध्य में आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। मालवा, मेवाड़, पंजाब आदि आपके विहार क्षेत्र रहे हैं।
मुनि श्री माणकचन्दजी
आपका जन्म केरी (टोंक) में हुआ । वि० सं० १९३५ में आप मुनि श्री
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