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आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा मुनि श्री छोटूलालजी
आपका जन्म निम्बाहेड़ा (टोंक) में हुआ । वि०सं० १९५५ में मुनि श्री नन्दलालजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की । दीक्षोपरान्त आपने १ से लेकर १५ तक की लड़ी की तपस्या की। साथ ही आपने २१,२५,२७ से लेकर ४३, ४५,५१,५३,५४,५९ दिनों के थोक केवल गर्म पानी के आधार पर किये । फलत: श्रीसंघ की ओर से आपको 'तपस्वी' के अलंकरण से विभूषित किया गया। आपने उदयपुर चातुर्मास में ५४ दिन की तपस्या की थी। पारणे के दिन उदयपुर महाराजा श्री फतेहसिंह ने अपने हाथों से दूध बहराया था। मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी
___आपका जन्म मन्दसौर में हुआ। वि० सं० १९७९ माघ शुक्ला तृतीया को रामपुरा में मुनि श्री नन्दलालजी के कर-कमलों से आपने आहती दीक्षा अंगीकार की। मुनि श्री हीरालालजी
आपका जन्म वि०सं० १९६४ पौष सुदि प्रतिपदा को मन्दसौर में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री लक्ष्मीचन्दजी (मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी) और माता का नाम श्रीमती कँवरबाई था। वि०सं० १९७९ माघ सुदि तृतीया को आपने अपने पिता मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी के साथ रामपुरा में दादा गुरु श्री नन्दलालजी के हाथों दीक्षा ग्रहण की और अपने पिता के शिष्य बने। दीक्षोपरान्त आपने आचार्य श्री खूबचन्दजी से आगमों का तलस्पर्सी अध्ययन किया। अल्पकाल में ही आपने 'दशवैकालिक', 'उत्तराध्ययन', 'आचारांग', 'सुखविपाक', 'नन्दीसूत्र', 'प्राकृत व्याकरण' आदि कंठस्थ कर लिये। बहुत दिनों तक आप आचार्य श्री खूबचन्दजी की सेवा में रहे और उन्हीं के साथ चातुर्मास किया। आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की सूची निम्नवत हैवि० सं०
वि०सं० स्थान १९८०
१९९०
रामपुरा १९८१ रतलाम
१९९१
चितौड़गढ़ १९८२ मन्दसौर
१९९२ ब्यावर १९८३ जावरा
१९९३ जयपुर १९८५ जावरा
१९९४
दिल्ली (चांदनी चौक) १९८६ जावरा
१९९५ जम्मू १९८७ रतलाम
१९९६ अम्बाला सिटी १९८८ जावरा
१९९७ दिल्ली १९८९ जावरा
१९९८
स्थान
अजमेर
सोजत
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