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आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा थोक केवल गर्म जल के आधार पर किये । आपके इस घोर तप के आधार पर श्रीसंघ ने आपको 'तपस्वी' अलंकरण से विभूषित किया। जब आपने ४९ की तपस्या की तब पारणे के दिन रतलाम के महाराजाधिराज श्री सज्जनसिंहजी के सुपुत्र श्री लोकेन्द्रसिंहजी ने अपने हाथों से दूध बहराया था। मेवाड़भूषण मुनि श्री प्रतापमलजी.
आपका जन्म वि०सं० १९६५ आश्विन कृष्णा सप्तमी दिन सोमवार को राजस्थान के देवगढ़ (मदारिया) में हुआ। आपका नाम प्रतापचन्द्र गाँधी रखा गया। आपके पिता का नाम श्री मोड़ीरामजी गाँधी व माता का नाम श्रीमती दाखाबाई गाँधी था। वि०सं० १९७९ मार्गशीर्ष पूर्णिमा को मन्दसौर में दीक्षा ग्रहणकर आप प्रतापचन्दजी गाँधी से मुनि श्री प्रतापमलजी हो गये। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती व अंग्रेजी भाषाओं के अच्छे जानकार थे। वि०सं० २०२९ में बड़ी सादड़ी में स्थानीय संघ द्वारा आप 'मेवाड़भूषण' पदवी से अलंकृत हुये। मेवाड़, मारवाड़, मालवा, पंजाब, बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, बम्बई आदि प्रदेश आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। आपकी सवर्गवास तिथि ज्ञात नहीं है। आप द्वारा किये गये चातुर्मास इस प्रकार हैं - वि० सं० स्थान,
वि० सं० स्थान, १९८०
१९९४ जलगाँव १९८१ रामपुरा
१९९५
हैदराबाद १९८२ मन्दसौर
१९९६ रतलाम रतलाम
१९९७ दिल्ली १९८४ जावरा १९९८
सादड़ी (मारवाड़) .१९८५ जावरा
१९९९ ब्यावर १९८६ रतलाम
२०००
जावरा १९८७ रतलाम
२००१ शिवपुरी १९८८ इन्दौर
२००२
कानपुर १९८९ रतलाम
मदनगंज १९९० रतलाम
२००४ इन्दौर रतलाम
२००५ अहमदाबाद १९९२ रतलाम
२००६
पालनपुर १९९३ जावरा
२००७ बकाणी
ब्यावर
१९८३
२००३
१९९१
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