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आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा
१९९७
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श्री हजारीमलजी (प्रथम)
आपका जन्म निम्बाहेड़ा के समीपस्थ ग्राम अरनोदा में हुआ । वि० सं० १९५८ में आपने मुनि श्री हीरालालजी के शिष्यत्व में आर्हती दीक्षा ग्रहण की। मालवा, मेवाड़, पंजाब आदि आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। आप शास्त्र व ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे।
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मुनि श्री गुलाबचन्दजी
आपका जन्म स्थान कंजार्डा था। आपने गृहस्थ जीवन छोड़कर वि०सं० १९५४ में मुनि श्री हीरालालजी के शिष्यत्व में दीक्षा ग्रहण की। बाद में आपकी पत्नी ने भी रंगुजी के सम्प्रदाय में साध्वी फूंदाजी की शिष्या के रूप में दीक्षा ग्रहण की।
मुनि श्री हजारीमलजी (द्वितीय)
आपका जन्म स्थान मन्दसौर था । वि० सं० १९५८ में आपने आर्हती दीक्षा ग्रहण की और मुनि श्री हीरालालजी के शिष्य कहलाये ।
मुनि श्री शोभालालजी
आपका जन्म स्थान नीमच था। आप मुनि श्री हीरालालजी के शिष्य कहलाये। इसके अतिरिक्त आपके सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री मयाचन्दजी
आप मेवाड़ के रहनेवाले थे । आपका जन्म वि०सं० १९३९ चैत्र शुक्ला नवमी दिन मंगलवार को हुआ। आपके पिता का नाम श्री दौलतरामजी व माता का नाम श्रीमती धीसीबाई था। वि० सं० १९६९ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को आप दीक्षा धारण कर मुनि
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