Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 503
________________ ४८४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मुनि श्री रामलालजी आपका जन्म वि० सं० १९६५ में जोधपुर में हुआ। १४ वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९७९ चैत्र सुदि प्रतिपदा को आप मुनि श्री चौथमलजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये। आप भी अच्छे व्याख्यानी सन्त थे। आपने भी नाथूलालजी के साथ संयममार्ग का त्याग कर दिया। मुनि श्री सन्तोषचन्दजी आपका जन्म वि०सं० १९४६ में रतलाम में हुआवि०सं० १९२७ कार्तिक वदि सप्तमी को उज्जैन में मुनि श्री चौथमलजी के कर-कमलों से आहती दीक्षा अंगीकार की। मुनि श्री चम्पालालजी आप मालवा के ताल के रहनेवाले थे। १८ वर्ष की आयु में आपने मुनि श्री चौथमलजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री रत्नलालजी आपका जन्म वि०सं० १९३६ में मन्दसौर में हुआ। वि०सं० १९८१ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को भीलवाड़ा में मुनि श्री चौथमलजी के श्री चरणों में आपने आहती दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के समय आपकी उम्र ४५ वर्ष थी। आपकी दो पत्नियाँ और दो पुत्र थे। आपकी दीक्षा के पूर्व सभी ने दीक्षा ले ली थी। मुनि श्री राजमलजी आप अजमेर स्थित जूनियाँ के रहनेवाले थे। ३२ वर्ष की उम्र में मुनि श्री मयाचन्द जी के शिष्यत्व में आर्हती दीक्षा अंगीकार की। इसके अतिरिक्त आपके सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री केवलचन्दजी आप मेवाड़ के कोसीथल के निवासी थे। आपका जन्म वि०सं० १९७१ में हुआ था। ११ वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९८२ फाल्गुन शुक्ला तृतीया को ब्यावर में मुनि श्री चौथमलजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये। आपकी माताजी एवं अनुज ने भी दीक्षा ग्रहण की थी। आप श्रमण संघ में उपाध्याय पद पर मनोनित हये थे। आपके नाम से अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हैं। आपके उपन्यास और कहानियाँ विशेष लोकप्रिय है। आपके शिष्य श्री अरुणमुनिजी आदि हैं, जो श्रमण संघ में हैं। मुनि श्री वक्तावरमलजी. आप मेवाड़ के कोसीथल ग्राम के रहनेवाले थे। ९४ वर्ष की अवस्था में वि० सं० १९८२, फाल्गुन शुक्ला तृतीया को ब्यावर में मुनि श्री चौथमलजी के हाथों आपकी दीक्षा हुई। आपके एक बड़े भाई व माता भी दीक्षित हुये थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616