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आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा
हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्तिक्रान्ति सम्प्रदाय
आचार्य श्री विजयराजजी
आपका जन्म वि०सं० २०१५ आश्विन शुक्ला चतुर्थी तदनुसार १७ अक्टूबर १९५८ को बीकानेर में हुआ | आपके माता-पिता का नाम श्रीमती भंवरीदेवी सोनावत और श्री जतनमलजी सोनावत है । वि० सं० २०२९ माघ शुक्ला त्रयोदशी तदनुसार १५ दिसम्बर १९७३ को भीनासर (गंगाशहर ) के जवाहर विद्यापीठ प्रांगण में १२ दीक्षाओं के प्रसंग पर आपने अपने माता-पिता व छोटी बहन के साथ आचार्य प्रवर श्री नानालालजी के कर-कमलों में भागवती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपके पिता का नाम श्री जितेन्द्रमुनिजी व माता का नाम श्री भंवरकुंवरजी और छोटी बहन का नाम श्री प्रभावतीजी रखा गया। दीक्षोपरान्त आपने सम्पूर्ण आगम, व्याकरण, न्याय, बौद्ध, सांख्य, मीमांसा, संस्कृत, प्राकृत भाषाओं में निबद्ध विभिन्न काव्य, महाकाव्य आदि का गहन अध्ययन किया तथा बीकानेर बोर्ड से 'जैन सिद्धान्त रत्नाकर' की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। लगभग १७ वर्षों तक चातुर्मासों में वैयावृत्य में निरत अन्तेवासी शिष्य के रूप में आप अपने गुरु के प्रति समर्पित भाव से संलग्न रहे। वर्ष १९९७ की समग्र चातुर्मास सूची से ज्ञात होता है कि आप आचार्य श्री नानालालजी के संघ से ई० सन् १९९६ में अलग हुये। इससे स्पष्ट होता है कि वर्ष १९९६ में हुक्मगच्छीय शान्तिक्रान्ति गच्छ की स्थापना हुई और श्री शान्तिमुनिजी प्रथम संघनायक बने । वि० सं० २०५४ चैत्र कृष्णा द्वितीया तदनुसार १५ मार्च १९९८ को श्री शान्तिमुनिजी द्वारा चिकारड़ा ग्राम में तरुणाचार्य पद के लिए आपके (मुनि श्री विजयराजजी के) नाम की घोषणा की गई। १७ मई १९९८ को चातुर्विध संघ द्वारा भीलवाड़ा में इस घोषित पद को स्वीकृति प्रदान की गयी और ३१ जनवरी १९९९ को चतुर्विध संघ के समक्ष वीरों की ऐतिहासिक भूमि चितौड़गढ़ किले पर फतेह प्रकाश और विजय स्तम्भ के प्रांगण में विशाल जनमेदनी के बीच आपको 'तरुणाचार्य' पद की चादर प्रदान की गयी । वि० सं० २०५६ कार्तिक कृष्णा तृतीया तदनुसार २७ अक्टूबर १९९९ को अजमेर में आप संघ के आचार्य पद पर विराजमान हुये । आप तेजस्वी प्रतिभा के धनी, प्रभावशाली वक्ता और दृढ़संयमी हैं तथा जीवनकल्याण के साथ-साथ जनकल्याण के अनेक आयामों के प्रणेता हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र हैं। वर्तमान में आप के संघ में कुल सन्त- संतियों की संख्या ८३ है, जिसमें मुनिराजजी १८ हैं तथा महासतियाँजी ६५ हैं।
वर्तमान सन्तों के नाम हैं
स्थविर मुनि शान्तिमुनिजी, मुनि श्री प्रेममुनिजी, मुनि श्री पारसमुनिजी, मुनि श्री कंवरचन्दमुनिजी, मुनि श्री रतनचन्दजी, मुनि श्री रत्नेशमुनिजी, मुनि श्री कीर्तिमुनिजी, मुनि
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