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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास दिव्य संगीत (भजन), ९२. जयन्ती गायन (भजन), ९३. श्रीमद् रधुनाथ चरित्र, ९४. मधुर साहित्यमाला १ (पद्य), ९५. जैन धर्म पुष्पतल (भजन), ९६. मधुर दृष्टान्तशतक (काव्य पद्य), ९७. गलब रो गोटालो, ९८. गोरो रो गोटालो। अप्रकाशित साहित्य
१. विक्रमसेन चरित्र, २. मिश्री काव्यविनोद (पद्य) अनेक विषयों पर ३. हट्ठिसिंह चरित्र, ४. विमलहंस चरित्र, ५. वैराग्योपदेश चरित्र, ६. चौबोली चरित्र, ७. पंचदंड चरित्र, ८. सती लक्ष्मी चरित्र, ९. महेन्द्रसिंह और १०. दलथंभनसिंह। आपकी ये दस रचनायें अप्रकाशित रहीं।
इन रचनाओं के माध्यम से आपने साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र- महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक, निबन्ध, शोध, उपन्यास, कहानियाँ, नाटक आदि में अपनी लेखनी चलायी है। वि० सं० २०४० पौष शुक्ला चतुर्दशी दिन मंगलवार तदनुसार १७ जनवरी १९८४ को सायं सात बजकर पाँच मिनट पर आपने स्वर्गलोक हेतु महाप्रयाण किया।
आपके शिष्य-प्रशिष्यों के नाम हैं- श्रमण संघीय सलाहकार उप-प्रवर्तक श्री सुकनमुनिजी, श्री अमृतचन्द्रजी 'प्रभाकर', जैन सिद्धान्तशास्त्री श्री अमरेशमनिजी 'निराला', श्री महेशमुनिजी तथा आपके गुरुभ्राता श्री मोतीलालजी के शिष्य-प्रशिष्यों के नाम हैं- प्रवर्तक श्री रूपचन्द्रजी 'रजत', सेवाभावी श्री महेन्द्रमुनिजी व श्री भुवनेशमुनिजी।
____ आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की सूची निम्नलिखित हैवि० सं० स्थान
वि०सं० स्थान १९६९ जैतारन (वैराग्य भाव में) १९७८ सोजतशहर १९७० केलवाज (,) १९७९
जैतारन १९७१ भावी (,) १९८०
जोधपुर १९७२ कुरड़ाया (,)
१९८१
सहवाज जेतरान (,) १९८२
जैतारन १९७३
१९८३ १९७४ सोजतशहर (,,)
१९८४
सोजत रोड १९७५ देवली आउवा (,) १९८५
जैतरान जैतारन १९८६
सोजतशहर १९७७ जोधपुर
१९८७
बलुंदी १. प्रारम्भ के सात चातुर्मास दीक्षा की अनुमति न मिलने के कारण वैराग्यभाव में गुरुदेव के साथ रहकर किये।
जोधपुर
१९७६
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