Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 466
________________ ४४७ आचार्य मनोहरदासजी और उनकी परम्परा मुनि श्री भजनलालजी आपका जन्म वि०सं० १९६४ में बड़ौत के पास भोला नामक ग्राम में हुआ। वि०सं० १९७८ में आप मुनि श्री लालचन्दजी के पास दीक्षित हुये। आपकी दीक्षा के समय मुनि श्री मोतीरामजी, श्री पृथ्वीचन्दजी, उपाध्याय श्री अमरमुनिजी, श्री श्यामलालजी, तपस्वी श्री जीतमलजी, तपस्वी श्री गणपतरामजी, श्री हरिकेशजी आदि विराजमान थे। मुनि श्री विनयचन्दजी आपका जन्म वि०सं० १९९२ श्रावण कृष्णा एकादशी को पहाड़ी धीरज (दिल्ली) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री जौहरीमल था। वि० सं० २००५ फाल्गुन कृष्णा पंचमी दिन वृहस्पतिवार तदनुसार १७ फरवरी सन् १९४९ को श्यामली में आपने मुनि श्री लालचन्दजी से आहती दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री कुंवरसैनजी आपका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सराय लुहारा (अमीनगर सराय) नामक ग्राम में वि०सं० १८६० के आस-पास हुआ। आप जाति से अग्रवाल थे। वि० सं० १८७२ में आप मुनि श्री रत्नचन्द्रजी के सम्पर्क में आये और वैरागी जीवन व्यतीत करने लगे। तीन वर्ष तक वैरागी जीवन व्यतीत करने के पश्चात् १५ वर्ष की अवस्था में वि० सं० १८७५ के आस-पास पण्डितरत्न मुनि श्री रत्नचन्द्रजी के शिष्यत्व में आपने आहती दीक्षा अंगीकार की। दीक्षोपरान्त आपने आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। आपने वि०सं० १८९५ में 'महासती अंजना' और 'चन्दनबाला की ढाल' की रचना की। आपका मुख्य विहार क्षेत्र उत्तरप्रदेश रहा है। आपके दो प्रमुख शिष्य हुये- मुनि श्री श्यामसुखजी और मुनि श्री ऋषिराजजी । वि० सं० १९३८ के पश्चात् आपका कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, अत: कहा जा सकता है कि वि०सं० १९३८ के उत्तरार्द्ध में आपका स्वर्गवास हुआ होगा। आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की जो जानकारी वि०सं० १९१३ से मिलती है - वि० सं० स्थान, १९१३- १९२० कुम्भेरनगरी (राजस्थान) १९२१-२३ मोती कटरा (आगरा) १९२४-१९२५ एलम (मुजफ्फरनगर) हिलवाड़ी (मेरठ) १९२७ लोहामण्डी (आगरा) १९२८ मोती कटरा (आगरा) १९२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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