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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास वि० सं० स्थान
वि०सं० स्थान २०१३ लश्कर
२०२२ धूरी २०१४ शिवपुरी
२०२३
रायकोट २०१५ आगरा
२०२४
मालेरकोटला २०१६ आगरा
२०२५ फरीदकोट २०१७ आगरा
२०२६ सोनीपत २०१८ दिल्ली (चाँदनी चौक)
२०२७ २०१९ बड़ौत
२०२८ सफीदोमंडी २०२० रोहतक
२०२९
दिल्ली (सदर) २०२१ दिल्ली (सदर)
जींद
मुनि श्री कस्तूरचन्दजी
आपका जन्म वि०सं० १९८३ चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में हिसार जिलान्तर्गत खरक पूनिया ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री शीशरामजी व माता का नाम श्रीमती लक्ष्मीबाई था। आपके बचपन का नमा 'छोटूराम' था। वि० सं० १९९८ माघ शुक्ला द्वितीया को संगरूर में पूज्य गुरुदेव श्री श्यामलालजी के सानिध्य में आप दीक्षित हुए और मुनि श्री प्रेमचन्दजी के शिष्य घोषित हुये । आपकी दीक्षा के समय तत्कालीन उपाध्याय श्री आत्मारामजी, पण्डितरत्न श्री हेमचन्द्रजी, गणावच्छेदक श्री बनवारीलालजी, व्याख्यानवाचस्पति श्री मदनलालजी, श्री रामजीलालजी, तपस्वी श्री फकीरचन्द्रजी, श्री पन्नालालजी, श्री चन्दनमुनिजी आदि सन्त विराजमान थे। दीक्षोपरान्त आपने लगातार तीन वर्ष तक दो दिन छोड़कर एकान्तर उपवास किया। तीन बार अष्टाह्निक उपवास कर चुके हैं। बेले, तेले आदि फुटकर उपवास आप हमेशा करते रहते हैं। आपकी रचनाओं में 'कस्तूर गीतांजलि' 'कस्तूर पुष्पांललि' और 'कस्तूर गीत सौरभ' आदि पुस्तिकाएँ प्रकाशित हैं। मुनि श्रीचन्द्रजी
आपका जन्म वि०सं० १९६२ मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री नन्हेमल तथा माता का नाम श्रीमती होशियारीदेवी था। लगभग सवा दो वर्ष वैरागी जीवन व्यतीत करने के पश्चात् वि० सं० १९८३ आषाढ़ कृष्णा तृतीया दिन रविवार को करनाल के बड़सत नामक कस्बे में आप गुरुदेव श्री श्यामलालजी के करकमलों से दीक्षित हुये। उपाध्याय श्री अमरमुनिजी के सानिध्य में शास्त्रों का अध्ययन किया है। ‘पण्डितरत्न प्रेममुनि स्मृति ग्रन्थ' में ऐसा उल्लेख मिलता है कि आपने दर्जनों छोटीछोटी पुस्तिकाओं का लेखन, संग्रह, शोधन एवं सम्पादन किया है। दिल्ली, उत्तरप्रदेश,
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