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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास के सम्पर्क में आये और वैरागी जीवन व्यतीत करने लगे। वि०सं० २००५ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी, महावीर जयन्ती के दिन मुनि श्री हेमचन्दजी के शिष्यत्व में आपने आहती दीक्षा अंगीकार की। आपके दीक्षा कार्यक्रम में जैनाचार्य श्री पृथ्वीचन्द्रजी, गणावच्छेक मुनि श्री श्यामलालजी, उपाध्याय श्री अमरमुनिजी, मुनि श्री प्रेमचन्द्रजी, महासती पन्नादेवी, परम विदुषी महासती पद्मश्रीजी, महासती सत्यवतीजी, महासती प्रियावतीजी आदि साधुसाध्वीवृन्द उपस्थित थीं। आपने उपाध्याय अमरमुनिजी की पुस्तक 'चिन्तण-कण' व 'पण्डितरत्न प्रेममुनि स्मृति ग्रन्थ' का कुशल सम्पादन किया है। मुनि श्री सुबोधचन्द्रजी
आपका जन्म २३ फरवरी १९६२ को रोहतक में हुआ। आपके पिता का नाम लाला श्री शेरसिंह व माता का नाम श्रीमती सीतादेवी है। महासती श्री सुनीताकुमारीजी से प्रतिबोधित हो वि० सं० २०३२ माघ शुक्ला पंचमी अर्थात् ५ फरवरी १९७६ को शान्तिनगर (दिल्ली) में मुनि श्री हेमचन्द्रजी के शिष्यत्व में आपने आहती दीक्षा अंगीकार की । आपकी दीक्षा आचार्य श्री आनन्दऋषिजी के सानिध्य में हुई थी। मुनि श्री महेन्द्रमुनिजी
आपका जन्म २५ अप्रैल १९५८ को करनाल जिलान्तर्गत यमुना किनारे धनसौली कराड़ गाँव में हआ। आपके पिता का नाम श्री चौधरी सुरजनसिंह व माता का नाम श्रीमती ज्ञानदेवी है । आपके बचपन का नाम इन्द्रसिंह है। १५-१६ वर्ष की अवस्था में आत्मिक शान्ति हेतु आपने अपना घर छोड़ दिया। गृहत्याग करने के पश्चात् आपने अपना नाम इन्द्रसिंह के स्थान पर महेन्द्र कुमार रख लिया और साधु महात्माओं के साथ घूमने लगे। ‘पण्डितरत्न प्रेममुनि स्मृति ग्रन्थ में ऐसा भी उल्लेख है कि आप कुछ दिनों तक महर्षि महेशयोगी के आश्रम में भी रहे थे। घूमते-फिरते महासती सुनीताकुमारीजी के सानिध्य में पहुंचे और उनकी प्रेरणा व चौधरी श्री सूरजभानसिंह के सहयोग से आप मुनि श्री श्रीचन्दजी के पास १ मार्च १९७७ को शक्तिनगर (दिल्ली) गये।
आचार्य श्री आनन्दऋषिजी व उपाध्याय श्री अमरमुनिजी आदि महापुरुषों की आज्ञा आने के पश्चात् १ दिसम्बर १९७७ दिन गुरुवार को प्रात: ९ बजे मुनि श्री श्रीचन्दजी के शिष्यत्व में आप दीक्षित हुये।
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