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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास २७५ तक पहुँच चुकी थी। आपके स्वर्गवास की तिथि उपलब्ध नहीं होती है फिर भी १९ वीं शती का उत्तरार्द्ध काल माना जा सकता है। आचार्य श्री गोविन्दरामजी
___ मुनि श्री लालचन्दजी के स्वर्गवास के पश्चात् चतुर्विध संघ ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। वि० सं० १९०२ में कोटा में आपका स्वर्गवास हो गया। इसके अतिरिक्त कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आचार्य श्री फतेहचन्दजी
आपका जन्म टोंक (कोटा निकटस्थ) के क्षत्रिय परिवार में हुआ था। आपके माता-पिता का नाम, आपकी जन्म-तिथि, दीक्षा-तिथि आदि की जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। इतनी सूचना मिलती है कि आप कोटा सम्प्रदाय' में आचार्य श्री गोविन्दरामजी के पश्चात् आचार्य पद पर आसीन हुए थे। आपका स्वर्गवास वि०सं० १९११ में कोटा के रामपुरा बाजार में हुआ । आचार्य श्री ज्ञानचन्दजी
आपके विषय में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते हैं। पूज्य श्री फतेहचन्दजी के पश्चात् आप संघ के आचार्य हुए। आपका स्वर्गवास वि०सं० १९२६ में राणीपुर में समाधिपूर्वक हुआ। आचार्य श्री छगनलालजी
आपका जन्म बूंदी से १६ मील दूर राणीपुर गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री मानकचन्दजी और माता का नाम श्रीमती मानाबाई था। आपने-अपने भाई श्री मगनलालजी के साथ वि० सं० १९११ फाल्गुन शुक्ला पंचमी को आहती दीक्षा अंगीकार की थी। आप अप्रतीम प्रतिभा के धनी थे। आपके व्यक्तित्व का प्रभाव हाड़ोती तथा खेरड़ में ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों व नगरों में भी फैला! ओसवाल, पोरवाल, बघेरवाल, अग्रवाल, माहेश्वरी तथा इतर जनमानस में आप दोनों भाई की खुब ख्याति बढ़ी। परिणामस्वरूप चतुर्विध संघ ने आपको आचार्य पद पर विराजित किया।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। वि०सं० १९४८ में आपका चातुर्मास बम्बई में सम्पन्न हुआ था- ऐसा उल्लेख मिलता है। रमेश मुनि जी ने 'श्री गुरुगणेश जीवन दर्शन' नामक पुस्तक में ऐसा लिखा है कि 'पूज्य धर्मदासजी की सम्प्रदाय के स्व० महाराष्ट्र मन्त्री श्री किशनलालजी को दीक्षा पाठ आप श्री ने ही पढ़ाया था।' यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि ऐसा देखा जाता है कि दीक्षा पाठ पढ़ानेवाला आर गुरु दो भिन्न व्यक्ति हो सकते हैं। आपका स्वर्गवास वि०सं० १९५४ में अलोट में संथारापूर्वक हुआ।
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