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आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा क्षमायाचना कर वैशाख दशमी को जीवनपर्यन्त अनशन व्रत ग्रहण किया। अनशन पाठ श्री अमीऋषिजी ने सुनाया । संथारा ग्रहण करने के तीन घंटे के पश्चात् ही आपका स्वर्गवास हो गया। आचार्य श्री माधवमुनिजी
पूज्य श्री नन्दलालजी के पश्चात् युवाचार्य श्री माधवमुनिजी आचार्य पद पर विराजित हुए। आपका जन्म वि०सं० १९२८ में हुआ। आपके पिता का नाम श्री बंशीधर जी एवं माता का नाम श्रीमती रायकुँवर था। श्री बंशीधरजी आगरा-भरतपुर के बीच अछनेरा कस्बा के निकट ओठेरा में रहते थे। आप जाति से ब्राह्मण थे । बालक माधव अल्पायु में ही माता-पिता की मंगल छाया से वंचित हो गये। तत्पश्चात् आप अपनी बुआ के पास भरतपुर चले गये। वहाँ पूज्य श्री मेघराजजी से आपका सम्पर्क हआ। आप रोज अपनी माता के साथ व्याख्यान सुनने जाते थे। मुनि श्री की दृष्टि आप पर पड़ी। मुनि श्री ने अनुमान लगाया कि यह लड़का (माधव) आगे चलकर जिनशासन का नाम उज्ज्वल करेगा। इसी भावना के साथ मुनि श्री ने माधव की बुआ से अपने मन की बात कही। बुआ ने सहर्ष दीक्षा की अनुमति दे दी। इस प्रकार वि० सं० १९४०, अक्षय तृतीया को आपकी दीक्षा हुई। लगभग ढाई वर्ष तक ही आप अपने दीक्षा गुरु के साथ रह पाये। महुआ रोड (भण्डावर) में सेठ रामलालजी चाँदूलालजी की दुकान में मुनि श्री ने चातुर्मास किया था। (चातुर्मास वर्ष ज्ञात नहीं होता है। वहीं पर मुनि श्री दो वृद्ध श्रावकों को बालमुनि श्री माधवमुनि को सौंप कर देवलोक हो गये। जैसा मुनि श्री निर्देश कर गये थे उसी अनुरूप दोनों श्रावकों ने श्री मगनमुनिजी के पास संदेश भेजा। समाचार पाते ही श्री मगनमनिजी उग्र विहार करके भण्डावर पहुँचे और श्री माधवमुनि को गले से लगा लिया। मुनि श्री मेधराजजी के स्वर्गवास के समय श्री माधवमुनिजी आयु १५-१६ वर्ष की थी। यह घटना वि०सं० १९४३ या १९४४ की होनी चाहिए।
श्री मगनमुनिजी की निश्रा मे ‘सप्तभङ्गी', स्याद्वाद', 'षडद्रव्य', 'नवतत्त्व', 'संग्रहणी', 'जीव-विचार', 'द्वादशानुप्रेक्षा', 'महादण्डक', 'निक्षेप-विचार' आदि प्रकीर्णक ग्रन्थ, 'अनुयोगद्वार', 'औपपातिक', 'राजप्रश्नीय', 'प्रज्ञापना', 'व्याख्याप्रज्ञप्ति', 'जीवाभिगम', 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति', 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' और 'प्रश्नव्याकरण' आदि का गहन अध्ययन किया। ऐसा उल्लेख मिलता है कि करौली के एक यतिवर्य से आपने चन्द्रिका और ज्योतिष का भी अध्ययन किया था। इसी प्रकार एक उल्लेख यह भी मिलता है कि काशी के पण्डित सरस्वती प्रज्ञाचक्षु से 'अष्टाध्यायी', 'महाभाष्य', व्याकरण और न्याय का ज्ञान प्राप्त किया था। पण्डितजी के पास अध्ययन करने के पश्चात् आपने 'सप्तभङ्गी तरङ्गिणी', 'स्याद्वादमञ्जरी', 'प्रमाणनयतत्त्वालोक', 'गुणस्थान-क्रमारोह', 'कर्मग्रन्थ', 'प्रवचनसारोद्धार', 'समयसार', 'द्रव्यसंग्रह', 'ज्ञानार्णव', 'तत्त्वार्थसूत्र', 'गोम्मटसार', 'तत्त्वार्थराजवार्तिक', 'जैन तत्त्वादर्श', 'तत्त्वनिर्णय प्रासाद', 'समकितसार', 'सम्यक्त्व
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