________________
४१६
स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास
माणकमुनि की सेवा में जाना था, उधर का विहार छोड़कर प्रवर्तक श्री की सेवा में उपस्थित हो गये । उन्हें जैसे-तैसे धार लाये। वि० सं० २००६ चैत्र शुक्ला अष्टमी को प्रवर्तक श्री ने उपवास किया। आप अष्टमी और चतुर्दशी को हमेशा उपवास करते थे। आपके साथ
सन्त श्री केवलमुनिजी ने आपकी इच्छा के अनुरूप आपको पूज्य श्री धर्मदासजी के अनशन पाट पर बैठाया। यहाँ यह विचारणीय बिन्दु है कि क्या मुनि श्री ताराचन्दजी के समय में पूज्य श्री धर्मदासजी का अनशन पाट अस्तित्व में था या यह मात्र एक धार्मिक विश्वास है। चैत्र शुक्ला नवमी को प्रातः ६ बजे आपने जीवन भर के लिए अनशन व्रत ग्रहण कर लिया और ७.४५ बजे आपने हमेशा के लिए नश्वर शरीर का त्याग कर दिया। जीतमलजी आदि आपके पाँच शिष्य थे।
मुनि श्री किशनलालजी
पूज्य श्री ताराचन्दजी के स्वर्गस्थ हो जाने के बाद मुनि श्री किशनलालजी संघ प्रवर्तक बनाये गये। श्री किशनलालजी का जन्म १९४४ में मोरिया (जावरा ) निवासी श्री केशरीचन्दजी नामक आद्यगौड़ ब्राह्मण के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम नन्दीबाई था। आपके बचपन का नाम नादर था। बारह वर्ष की अवस्था में अर्थात् वि०सं० १९५६ में आपकी सगाई रुक्मणी नाम की कन्या से हुई । वि० सं० १९५६ में दुष्काल पड़ा। सभी लोगों के साथ ब्राह्मण परिवार भी अपने जीवन निर्वाह के लिये मोरिया ग्राम से पलायन हो रहे थे। नादर भी अपने माता-पिता के साथ वहाँ से निकल पड़े, किन्तु दुर्भाग्यवश माता-पिता से बिछुड़ गये। बिछुड़कर भटकते हुए खाचरोंद पहुँचे। वहाँ केशरीमलजी नामक श्रावक के यहाँ आश्रय मिला। पूज्य श्री नन्दलालजी खाचरौंद पधारे। वहीं से आप पूज्यश्री के साथ हो लिये । वि० सं० १९५९ श्रावण शुक्ला द्वादशी को पूज्यश्री के सान्निध्य में रतलाम में आपकी दीक्षा हुई। गुरुवर्य की निश्रा में आपने आगमों व अन्य शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। वि० सं० २००६ चैत्र शुक्ला नवमी को आप श्री ताराचन्दजी के देहान्त के पश्चात् संघ के प्रवर्तक बनाये गये । आपके समय में ही श्रमण संघ रूपी साधु संगठन की पूर्व भूमिका के रूप में पूज्य श्री धर्मदासजी की सम्प्रदाय, ऋषि सम्प्रदाय, पूज्य श्री मन्नालालजी की सम्प्रदाय आदि पाँच सम्प्रदायों का संगठन अस्तित्व में आया। वि०सं० २००९ में जो सादड़ी में बृहत् साधु सम्मेलन हुआ जिसमें अनेक स्थानकवासी सम्प्रदायों का विलीनीकरण हुआ उस वर्धमान श्रमण संघ में आपको महाराष्ट्र प्रान्त का मंत्री पद प्रदान किया गया। वि० सं० २०१२ के बाद आप शारीरिक रूप से अस्वस्थ रहने लगे और इन्दौर में आपका स्थिरवास हो गया। वि० सं० २०१६ में रुग्णता और बढ़ गयी। आप समभाव से पीड़ा सहन करते रहे । वि० सं० २०१७ माघ कृष्णा द्वितीया की शाम में आपका स्वर्गवास हो गया।
1
आपके तीन शिष्य हुये - १. मालवकेसरी श्री सौभाग्यमलजी, २. श्री गुलाबचन्द जी और ३. श्री विनयचन्दजी। मुनि श्री गुलाबचन्दजी का एक वर्ष बाद ही देहान्त हो गया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org