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आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा मुनि श्री माणकमुनिजी
आपका जन्म वि०सं० १९७४ में पेटलावद में हुआ। आपके माता-पिता का नाम उपलब्ध नहीं होता है। वि०सं० १९८७ में थाँदला चातुर्मास में पूज्य प्रर्वतक श्री ताराचन्दजी से आपका सम्पर्क हुआ और आप वैराग्यपूर्ण जीवन जीने लगे। वि०सं० १९८८ वैशाख कृष्णा प्रतिपदा दिन सोमवार को कराही (कड़ी कस्बा) में श्री सूर्यमुनिजी के पास आपकी दीक्षा हुई। दीक्षा होने के पश्चात् आपने अपने गुरु श्री सूर्यमनिजी के साथ दक्षिण प्रदेश में विचरण किया। आप प्रवचनकला में निपुण थे। आपके वर्षावास की पूर्ण सूची तो उपलब्ध नहीं होती, जो उपलब्ध होती हैं वे इस प्रकार हैं
वि०सं० १९९८ इन्दौर में, वि०सं० १९९९ पेटलावद में, वि०सं० २००० लीम्बड़ी में, वि० सं० २००१ रतलाम में, वि०सं० २००२ लीम्बड़ी (पंचमहाल) में लीम्बड़ी में ही श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को आप पक्षाघात से ग्रसित हो गये। वहाँ से आप थांदला पधारे। दो चातुर्मास वहाँ किये अर्थात् वि० सं० २००३ और २००४ के चातुर्मास थांदला में हुये। वि०सं० २००५ से २००९ तक के पाँच चातुर्मास इन्दौर में हुए। वि०सं० २०१० के चातुर्मास थांदला में किये। वहीं वि०सं० २०११ आषाढ़ कृष्णा चतुर्थी को दोपहर में आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री उमेशमुनिजी
आपका जन्म थांदला में हुआ। आपकी दीक्षा वि० सं० २०११ चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को थाँदला में हुई। आप श्री सूर्यमुनिजी के शिष्य हैं। आप प्रखर प्रवचनकार एवं सिद्धहस्त लेखक हैं। आपकी कुछ रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं- सूर्य साहित्य भाग १ से ४, श्रई धर्मदास चरितामृत, चरित्र सौरभ, मयूर पंख, श्रीमद्'धर्मदास म० सा० और उनकी मालव शिष्य परमपराएँ, केशी-गौतम संवाद, समकित छप्पनी (सम्पादित), णमोक्कार-अणुप्पेहा तथा णमोक्कारज्झाणं, मोक्खपुरि सत्यो आदि।
वर्तमान में आपके साथ मुनि श्री चैतन्यमुनिजी, मुनि श्री जिनेन्द्रमुनिजी, मुनि श्री वर्धमानमुनिजी, मुनि श्री संयतमुनिजी, मुनि श्री धर्मेशमुनिजी, मुनि श्री किशनमुनिजी, मुनि श्री चिन्तनमुनिजी और मुनि श्री संदीपमुनिजी विद्यमान हैं। मुनि श्री विनयमुनिजी
आपका जन्म वि०सं० १९७५ में उज्जैन या उज्जैन के समीपस्थ ग्राम में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री कुँवरलालजी चोरड़िया और माताजी का नाम श्रीमती मैनाबाई था। आप मुनि श्री नगीनचन्दजी के संसारपक्षीय भाई थे। आप अपने काकाजी के यहाँ रहते थे। एक दिन आप चुपचाप स्कूल जाने के बहाने स्वयं साधुवेश धारण कर दीक्षार्थ प्रवर्तक श्री ताराचन्दजी के पास लीम्बड़ी पहुँच गये। वहीं आपके भ्रातामुनि श्री नगीनचन्दजी भी
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