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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास संजयद्वार का थोकड़ा
वि० सं० १९०३ जयपुर सांगानेरी
रामचन्द्र स्थानक
रामचन्द्र तपस्या के फल की ढाल
आगरा (लोहामण्डी) नेमनाथ भगवान के चौबीस चौक वि० सं० १९०५ बामनौली भदनद्वार
जलेसर सुखानन्द-मनोरमा चरित्र व रतनपाल चरित्र वि०सं० १९०७ हाथरस प्रश्नोत्तरमाला ऋषभदेव भगवान् की स्तुति व चार वि०सं० १९११ बिनौली बोल दुर्लभ की सिज्झाय ढाल सागर
वि० सं० १९१४ , संजय द्वार
वि०सं० १९१५ बड़ौत आप साहित्य-साधना के साथ-साथ तप-साधना में भी अग्रगण्य थे। दीक्षा ग्रहण करने के साथ ही आपने कठोर संयम-साधना करना भी प्रारम्भ कर दिया था। उपवास, छट्ठभक्त, अष्टमभक्त, विगय-त्याग, ग्रीष्म आतापना, शीत परीषह, अभिग्रह आदि विभिन्न प्रकार के तप आप किया करते थे। संयम-साधना के साथ आप उग्र विहारी भी थे। चालीसचालीस मील का मार्ग एक दिन में तय कर लिया करते थे। वि०सं० १९२१ वैशाख पर्णिमा दिन शनिवार को लोहामण्डी (आगरा) के जैन भवन में संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। . ऐसा उल्लेख मिलता है कि आपके २२ शिष्य थे जिनमें मुनि श्री कुंवरसैनजी, मुनि श्री विनयचन्दजी, मुनि श्री पूर्णचन्द्रजी, मुनि श्री अमरचन्दजी, मुनि श्री चन्द्रभानजी मुनि श्री ख्यालीरामजी (पल्लीवाल) व मुनि श्री चतुर्भुजजी आदि प्रमुख थे। आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की सूची इस प्रकार है -
विक्रम संवत् स्थान १८६२
नारनौल (पंजाब) १८६३ भिवानी (हिसार) १८६४ हाँसी (हिसार) १८६५ नारनौल (पंजाब)
सिंघाणा (शेखावाटी) १८६७
कुचामन (मारवाड़)
विक्रम संवत् स्थान १८६८ भरतपुर (राजस्थान) १८६९ मालेरकोटला (पंजाब) १८७० अमृतसर (पंजाब) १८७१ महेन्द्रगढ़ (पंजाब) १८७२ पटियाला (पंजाब) १८७३ बड़ौत (उत्तरप्रदेश,
१८६६
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