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आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा
४११ जिनका समय वि० सं० १८१७ से वि०सं० १८४४-१८४५ तक है। आप इस परम्परा के तृतीय पट्टधर थे। किन्तु 'प्रभुवीर पट्टावली' के अनुसार आचार्य माणकचन्दजी के पश्चात् मुनि श्री जसराजजी पट्टधर हुए। मुनि श्री जसराजजी के पट्ट पर मुनि श्री पृथ्वीचन्दजी हुए। आचार्य श्री हस्तीमलजी ने मुनि श्री मयाचन्दजी को मुनि श्री पृथ्वीचन्दजी के समकालीन बताया है। आचार्य श्री अमरचन्दजी.
आपके जीवन के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आपने कुछ ग्रन्थों की प्रतिलिपि की थी जिसके आधार पर श्री उमेश मुनिजी ने वि० सं० १८४५ से वि० सं०१८८१ तक आपका अस्तित्व काल माना है । साथ ही यह भी कहा है कि ये ही अमरचन्दजी थे या कोई और यह निर्णय नहीं हो सकता है क्योंकि श्री अमरचन्दजी दो हुये हैं। मुनि श्री अमरचन्दजी के दो होने की पुष्टि 'प्रभुवीर पट्टावली' से भी होती है
एक बड़े अमरचन्दजी थे और एक छोटे। श्री उमेशमुनिजी ने श्री अमरचन्दजी के बाद मुनि श्री केशवजी को पट्टधर स्वीकार किया है। 'प्रभवीर पट्टावली' और आचार्य हस्तीमलजी के अनुसार मुनि श्री पृथ्वीचन्दजी या मुनि श्री मयाचन्दजी के पश्चात् बड़े अमरचन्दजी पट्टधर हुये और बड़े अमरचन्दजी के पट्टधर के रूप में मुनि श्री केशवजी पट्ट पर विराजित हुये। मुनि श्री अमरचन्दजी के दो प्रमुख शिष्य हुये- मुनि श्री परसरामजी और मुनि श्री केशवजी। आचार्य श्री केशवजी
पूज्य श्री अमरचन्दजी के पट्टधर के रूप में मुनि श्री केशवजी पट्ट पर विराजित हुए। आपके जीवन के विषय में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। श्री उमेश मुनि जी ने आपका अस्तित्व काल वि०सं० १८८० से वि०सं० १९०१ या वि०सं० १९१३ तक माना है । आपने वि०सं० १८८१ में कोटा में मुनि श्री परसरामजी (कोटा सम्प्रदाय) के साथ चातुर्मास किया- ऐसा उल्लेख मिलता है। आपके शिष्यों में मुनि श्री मोखमसिंह जी और मुनि श्री इन्द्रजीतजी प्रमुख थे। कुछ मतभेदों के कारण मुनि श्री परसरामजी के शिष्य आपसे अलग विचरने लगे थे। मतभेद होने पर भी संघ का विभाजन नहीं हुआ था। आचार्य श्री. मोखमसिंहजी ___मुनि श्री केशवजी के पाट पर मुनि श्री मोखमसिंहजी बैठे। आपका जन्म वि०सं० १८६९ माध पूर्णिमा को प्रतापगढ़ निवासी श्री नेमिचन्दजी पोरवाल की धर्मपत्नी श्रीमती विरजाबाई की कुक्षि से हुआ। वि०सं० १८९० मार्गशीर्ष कृष्णा नवमी को रतलाम में मुनि श्री केशवजी के सानिध्य में आपकी दीक्षा हुई। मुनि श्री केशवजी के संरक्षण में आपने शिक्षा प्राप्त की। मुनि श्री हिन्दुमलजी, मुनि श्री शिवलालजी और मुनि श्री
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