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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास सीतामहू शाखा की शिष्य परम्परा
धर्मदासजी जसरांजजी
जोगराजजी
पद्मजी
शोभाचन्दजी
मोतीचन्दजी
शम्भूरामजी
कनीरामजी
दलीचन्दजी जीतमलजी | नन्दलालजी
बदीचन्दजी
आचार्य उदयचन्दजी की रतलाम शाखा
जैसा कि पूर्व में कहा गया है कि पूज्य धर्मदासजी की.मालवा परम्परा कई शाखाओं और उपशाखाओं में विभक्त हो गयी थी। प्रथम दो मुख्य शाखा बनी- उज्जैन शाखा और रतलाम शाखा। उज्जैन शाखा से दो प्रशाखाएँ निकलीं- भरतपुर शाखा और शाजापुर शाखा। उज्जैन शाखा, भरतपुर शाखा और शाजापुर शाखा की आचार्य एवं शिष्य परम्परा का उल्लेख हम पूर्व में कर चुके हैं, अत: यहाँ हम उसकी पुनरावृत्ति न करके सीधे रतलाम शाखा की परम्परा का वर्णन कर रहे हैं।
पूज्य श्री रामचन्द्रजी और मुनि श्री माणकचन्दजी का परिचय उज्जैन शाखा के वर्णन के अन्तर्गत दिया जा चुका है, अत: यहाँ पुनर्वर्णन करने की आवश्यकता नहीं जान पड़ती। आचार्य श्री मयाचन्दजी
__ आपके जीवन के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है। इतना पता चलता है कि आप मुनि श्री उदयचन्दजी के प्रशिष्य और मुनि श्री खुशालचन्दजी के शिष्य थे। आपके आठ शिष्य थे जिनके नाम हैं - मुनि श्री भगाजी, मुनि श्री खेमजी, मुनि श्री चिमानाजी, मुनि श्री मोतीचन्दजी, मुनि श्री अमरजी, मुनि श्री शोभाचन्दजी, मुनि श्री दानाजी और मुनि श्री भीषमजी। आपने कुछ ग्रन्थों व शास्त्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार की थीं
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