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धर्मदासजी की पंजाब, मारवाड़ एवं मेवाड़ की परम्पराएं
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शयन नहीं करना आदि का नियम ले रखा है, जिसका दृढ़ता से पालन करते आ रहे हैं। वि०सं० २०३२ से आपने आजीवन पोरसी करने का व्रत ले रखा है। मौन साधना का अभ्यास करते-करते आपने १०८ दिन तक के मौन का भी नियम ले रखा है। इसके अतिरिक्त भी आप प्रतिदनि १२ बजे से २ बजे तक दो घण्टे का मौन रखते हैं तथा सूर्य की आतापना लेते हैं। आपकी सेवा के प्रति लगाव के कारण ही आपको वि०सं० २०३२ फाल्गुन सुदि अष्टमी को 'कुशल सेवा मूर्ति' की उपाधि से अलंकृत किया गया है। किसी कारणवश आप आचार्य हस्तीमलजी के संघ से अलग हो गये । वर्तमान में आप आचार्य नानालालजी के शिष्य शान्तिमुनिजी के साथ हैं।
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