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(स) छोटे पृथ्वीचन्द्रजी की मेवाड़ परम्परा का इतिहास
मेवाड़ की यशस्वी सन्त परम्परा में पूज्य श्री पृथ्वीचन्दजी (छोटे) का नाम सन्तरत्नों में गिना जाता है। धर्मदासजी के प्रमुख २२ शिष्यों में से आप छठे शिष्य थे। आप बड़े ही प्रभावशाली आचार्य थे। आपने श्री धर्मदासजी के नेतृत्व में तत्कालीन साधु समाज में व्याप्त शिथिलता को दूर करने हेतु क्रियोद्धार किया और मेवाड़ परम्परा के आद्य प्रवर्तक कहलाये । आपके स्वर्गवास के पश्चात् द्वितीय पट्टधर आचार्य श्री दुर्गादासजी हुये। द्वितीय पट्टधर के रूप में एक नाम और आता है- मुनि श्री हरिदासजी/हरिरामजी । द्वितीय पट्टधर के रूप में यह नाम 'गुरुदेव पूज्य श्री माँगीलालजी महाराज : दिव्य व्यक्तित्व' नामक पुस्तक में मिलता है। पुस्तक के रचयिता मुनि श्री हस्तीमलजी 'मेवाड़ी' हैं। प्रवर्तक श्री अम्बालालजी अभिनन्दन ग्रन्थ' में द्वितीय पट्टधर मुनि श्री दुर्गादासजी और तृतीय पट्टधर हरिदासजी/हरिरामजी को माना गया है जिसकी पुष्टि आचार्य हस्तीमलजी द्वारा रचित पुस्तक 'जैन आचार्य चरितावली' से भी होती है। चतुर्थ पट्टधर के रूप में मुनि श्री गंगाराम जी और पंचम पट्टधर के रूप में मुनि श्री रामचन्द्रजी का नाम आता है। मुनि श्री रामचन्द्रजी के पश्चात् आचार्य पट्ट पर मुनि श्री नारायणदासजी विराजित हुये, जो छठवें पट्टधर थे। सातवें पट्टधर मुनि श्री पूरणमलजी हये । आपके स्वर्गवास के पश्चात् मुनि श्री रोड़मलजी संघ के आचार्य पद पर पदासीन हुये ।। आचार्य श्री रोड़मलजी*
आपका जन्म वि०सं० १८०४ में नाथद्वारा के मध्य देवर (देपर) नाम ग्राम में हुआ। पिता का नाम श्री डूंगरजी और माता का नाम श्रीमती राजीबाई था। वि०सं० १८२४ के वैशाख में बीस वर्ष की अवस्था में आपने देवर ग्राम में ही मुनि श्री हरिदासजी स्वामी के शिष्यत्व में दीक्षा ग्रहण की । मुनि श्री हरिदासजी स्वामी के शिष्यत्व में दीक्षित होने के सम्बन्ध में मुनि श्री सौभाग्यमुनिजी 'कुमुद' का मानना है कि मनि श्री रोड़मलजी के गुरु मुनि श्री पूरणमलजी थे न कि मुनि श्री हरिदासजी स्वामी। मुनि श्री के इस कथन की पुष्टि वि०सं० १९३८ में गुलाबचन्दजी द्वारा लिखित पट्टावली में 'पुरोजी का रोड़ीदास' किये गये उल्लेख से भी होती है। यह सम्भव है कि उन्हें दीक्षा हरिदासजी ने दी हो और पूरणमलजी का शिष्य धाषित किया हो।
___ आपने अपने जीवनकाल में ४३ मासखमण, २३० अठाई, १९५ पंचोला, २५८ चोला, ३४५ तेला, ७७० बेला, १५०० उपवास किये।
___ * यह परम्परा मुनिजी हस्तीमलजी म.सा. द्वारा लिखित 'पूज्य गुरुदेव श्री माँगीलालजी म० : दिव्य व्यक्तित्व' पर आधारित है।
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