________________
३८७
धर्मदासजी की पंजाब, मारवाड़ एवं मेवाड़ की परम्पराएं (चादर) हाथ में लेकर सकल संघ से निवेदन किया कि सम्प्रदाय को उन्नत बनाने के लिए निम्न तीन बातें आवश्यक हैं
१. गादीधर की निश्रा में ही सभी सन्त दीक्षित हों। २. सन्त और सतियाँ चातुर्मासिक आज्ञा पूज्यश्री से ही लें। ३. सम्प्रदाय से बहिष्कृत सन्त-सतियों का आदर न करें।
सकल संघ ने उपर्युक्त तीनों नियम को स्वीकार कर लिया तत्पश्चात सभी मुनिराजों ने पछेवड़ी पूज्य श्री एकलिङ्गदासजी के कन्धों पर ओढ़ाई । इस अवसर श्री मोतीलाल वाडीलाल शाह भी उपस्थित थे। उस चादर महोत्सव के अवसर पर श्रावक-संघ ने सम्प्रदाय के हित में जो निर्णय लिए वे इस प्रकार है१. परम्परागत आम्नाय के अनुसार प्रतिदिन प्रतिक्रमण में ४ लोगस्स का
ध्यान, पक्खी के दिन १२ लोगस्स का ध्यान, बैठती चौमासी, फाल्गुनी
चौमासी पर दो प्रतिक्रमण और २० लोगस्स का ध्यान, संवत्सरी पर दो __ प्रतिक्रमण और ४० लोगस्स का ध्यान करना चाहिए।
दो श्रावण हो तो संवत्सरी भाद्रपद में तथा भाद्रपद दो हों तो संवत्सरी दूसरे भाद्रपद में करनी चाहिए।
सन्त-सतीजी के चातुर्मास की विनती आचार्य श्री के पास करनी चाहिए। ४. अपने आचार्य उपस्थित हों तो अन्य साधुओं का व्याख्यान नहीं हो ।
व्याख्यान आचार्य श्री का ही होना योग्य है। किसी आडम्बर के प्रभाव में आकर अपनी सम्प्रदाय की आम्नाय नहीं
छोड़ना। ६. दीक्षा लेने के भाव हों तो अपनी ही सम्प्रदाय में दीक्षा लेना।
मुनि श्री मोतीलालजी और मुनि श्री माँगीलालजी आपके प्रमुख शिष्य थे । ३९ वर्ष संयममय जीवन व्यतीत कर वि०सं० १९८७ श्रावण कृष्णा द्वितीया को प्रातः ९ बजे आपने ऊँटाला (बल्लभनगर) में सामाधिपूर्वक स्वर्ग के लिए प्रयाण किया। आपने अपने संयमजीवन में जितने चातुर्मास किये उनकी संक्षिप्त जानकारी इ : प्रकार है -
is
in
-
-
-
१. २.
गुरुदेव श्री माँगीलाल जी न०: दिव्य व्यक्तित्व, मुनि हस्तीमलजी, पृ०-१४४ ओच्छव की पुस्तिका, पृ०-६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org