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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास दीक्षा आदि किसी भी तथ्य की जानकारी उपलब्ध नहीं है। उपलब्ध जानकारी इतनी है कि आप मुनि श्री ऋषभदासजी के शिष्य थे और दीक्षोपरान्त गुजरात काठियावाड़ आदि क्षेत्रों में आपने अधिक धर्म प्रचार किया। संभवत: दूरस्थ प्रदेश में रहने के कारण ही आपके विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। मुनि श्री गुलाबचन्दजी आपके एक काठियावाड़ी शिष्य हुये हैं। 'ओच्छव की पुस्तिका' से यह ज्ञात होता है कि आपका स्वर्गवास वि०सं० १९४९ में हुआ। मुनि श्री गुलाबचन्दजी
आपके विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। हाँ! इतना उपलब्ध होता है कि आप मुनि श्री बालकृष्णजी के शिष्य थे। ऐसी जनश्रुति है कि आप मोरबी दरबार के पुत्र थे। मुनि श्री वेणीचन्दजी
आपके विषय में भी कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है। आपका जन्म उदयपुर के चाकूड़ा में हुआ। कब हुआ इस सम्बन्ध में कोई तिथि उपलब्ध नहीं होती है। आप मुनि श्री ऋषभदासजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये । 'आगम के अनमोल रत्न' में आपके स्वर्गवास की तिथि वि० सं० १९६१ फाल्गुन कृष्णा अष्टमी दी गयी है और स्थान चैनपुरा बताया गया है । आपका विहार क्षेत्र मेवाड़ ही रहा। आपके दो शिष्य हुये- मुनि श्री एकलिङ्गदासजी और मुनि श्री शिवलालजी। आचार्य श्री एकलिङ्गदासजी
आपका जन्म वि०सं० १९१७ ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या को चित्तौड़गढ़ के संगसेरा नाम ग्रामक में हुआ। आपके पिता का नाम श्री शिवलालजी और माता का नाम श्रीमती सुरताबाई था। आप बालब्रह्मचारी ही थे। माता-पिता के स्वर्गस्थ हो जाने के पश्चात् वि०सं० १९४८ फाल्गुन कृष्णा प्रतिपदा दिन मंगलवार को मुनि श्री वेणीचन्द्रजी के सानिध्य में अकोला में आप दीक्षित हुये। आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। मुनि श्री मानमलजी स्वामी और मुनि श्री ऋषभदासजी के पश्चात् मेवाड़ साधु व श्रावक समाज में विखराव-सा आ गया था। फलत: चतुर्विधि संघ को आचार्य की कमी महसूस होने लगी। मुनि श्री तेजसिंहजी सम्प्रदाय के मुनि श्री कालूरामजी ने भी श्रावकों को इस कार्य के लिए प्रेरित किया। इस सम्बन्ध में वि०सं० १९६८ पौष सदि दशमी को सनवाड़ में सभी मेवाड़ के स्थानकवासी सन्तों का समागम हुआ जिसमें ४० गाँवों के श्रावक-श्राविकाओं ने भी भाग लिया। इस समागम में आचार्य पद हेतु मुनि श्री एकलिङ्गदासजी का नाम मनोनित किया गया और उसी वर्ष ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी दिन गुरुवार को आचार्य पद प्रदान करने की तिथि निर्धारित की गयी । इस प्रकार निर्धारित तिथि को राशमी में आचार्य पद चादर महोत्सव का आयोजन किया गया। महोत्सव में मुनि श्री कालूरामजी ने पूज्य पछेवड़ी
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