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आचार्य धर्मदासजी की मालव परम्परा देते थे। अर्द्धरात्रि के पश्चात् आप उर्ध्वपाद-आसन का एक प्रहर तक योग-साधना करते थे।
आपके तीन प्रमुख शिष्य थे-मुनि श्री मेघराजजी, मुनि श्री काशीरामजी और मुनि श्री गंगारामजी । मुनि श्री मेघराजजी से 'भरतपुर शाखा' अस्तित्व में आयी और गंगाराम जी से 'शाजापुर शाखा' की उत्पत्ति हुई। मुनि श्री काशीरामजी मूल उज्जैन शाखा में ही बने रहे।
__ भरतपुर शाखा में मुनि श्री नरोत्तमदासजी के बाद मुनि श्री मेघराजजी प्रमुख हुए। श्री मेघराजजी के पश्चात् मुनि श्री चुन्नीलालजी, मुनि श्री चुन्नीलालजी के बाद मुनि श्री मगनमुनिजी, श्री मगनमुनिजी के बाद मुनि श्री रतनमुनिजी संघ के प्रमुख हुए। श्री रतनमुनिजी के पश्चात् श्री माधवमुनिजी संघप्रमुख हुये, किन्तु वे 'रतलाम शाखा' के आचार्य हो गये। श्री मगनमुनिजी के पश्चात् मुनि श्री शोभाचन्दजी और मुनि श्री रतचन्दजी भरतपुर शाखा में ही बनें रहे। इन दोनों के पश्चात् यह परम्परा समाप्त-सी हो गई। इस प्रकार भरतपुर शाखा अधिक काल तक जीवित नहीं रह सकी। आचार्य श्री काशीरामजी
आप उज्जैन शाखा के छठे आचार्य हुए। आपकी जन्म-तिथि, दीक्षा-तिथि, आचार्य पद-प्रतिष्ठा-तिथि के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है । इतनी जानकारी होती है कि आप मुनि श्री नरोत्तमदासजी के शिष्य थे।
__ आपके पाँच शिष्य थे- मुनि श्री तुलसीरामजी, मुनि श्री रामरतनजी, मुनि श्री रामचन्द्रजी, मुनि श्री कन्हैयालालजी और मनि श्री पन्नालालजी। मनि श्री पन्नालालजी के शिष्य मुनि श्री ख्यालीरामजी और श्री ख्यालीरामजी के शिष्य मुनि श्री भोलारामजी
हुये।
आचार्य श्री रामरतनजी
पूज्य श्री काशीरामजी के पट्ट पर मुनि श्री रामरतनजी विराजित हुए। आपकी जन्म-तिथि, जन्म-स्थान, दीक्षा-तिथि, दीक्षा-स्थान, स्वर्गारोहण आदि के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है।
आपके तीन शिष्य हुए जिनके नाम हैं- मुनिश्री चम्पालालजी', मुनि श्री केशरी लालजी और मुनि श्री छोगामलजी। मुनि श्री छोगामलजी के शिष्य मुनि श्री लालचन्दजी हुए।
१.
पूज्य नरोत्तम हुवा, तस पाटे हो, तपसी-सरदार। द्वादश हायन लग जिने, नहीं निद्रा हो, लई पाँव पसार।। आर्द्धरात्रि वीत्या पछे, नित करता हो, निज आतम ध्यान। उर्द्धत्व पाद आसन करी, थित रहता हो, इक प्रहर समान ।। 'मेघमुनि चरित्र प्रशिस्त'
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