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नागौर
स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास पूज्य आचार्य कुशलोजी के सानिध्य में दीक्षा ग्रहण कर ली। तीव्र बुद्धि होने के कारण आपने अल्पकाल में ही व्याकरण और आगम साहित्य का अध्ययन कर लिया। ज्ञान और तप के तेजस्वी ओज से आपने जिनशासन का खूब प्रचार-प्रसार किया । न केवल जैन समाज में बल्कि जैनेतर समाज में भी दयाधर्म को प्रचारित-प्रसारित किया। ऐसी मान्यता है कि आप कई वर्षों तक एकान्तर और बेले-बेले पारणा करते रहे। आपने अपने जीवन में ग्यारह शिष्यों को दीक्षित किया जिनमें मुनि श्री दौलतरामजी, मुनि श्री प्रेमचन्द्रजी, मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी, मुनि श्री ताराचन्दजी आदि प्रमुख थे। आपका पूर्ण मुनि जीवन ४१ वर्ष का रहा- ऐसा उल्लेख मिलता है। अत: स्वर्गवास वि० सं० १९५८-१९५९ के आस-पास हुआ होगा- ऐसा माना जा सकता है। आपकी जन्प-तिथि का कहीं स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। आप द्वारा किये गये चातुर्मास निम्नवत हैंवि० सं०
स्थान वि० सं०
स्थान १८१९
रीयां १८३९
पाली १८२०
भीलवाड़ा १९४०
रीयां १८२१
निवाज १८४१ १८२२
१८४२ १८२३
पाली १८४३
जोधपुर १८२४
जयपुर १८४४
नागौर १८२५
आगरा १८४५
पीपाड़ १८२६
गगराणा १८४६ १८२७ नागौर १८४७
नागौर १८२८
जालौर १९४८ १८२९
पाली १९४९
भीलवाड़ा १८३०
सोजत १८५०
शाहपुरा १८३१
पाली
१८५१ ८३२
रीयां
१८५२ १८३३
१९५३
नागौर १८३४
पीपाड़
१८५४ १८३५
बीकानेर १८५५ १८३६ पाली १८५६
पाली १८३७
नागौर १८५७
नागौर १८३८
पीपाड़ १८५८
मेड़ता
पाहुनै
पीपाड़
रीयां
जोधपुर
पीपाड़
पाली
जोधपुर
जोधपुर मेड़ता
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