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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मुनि श्री बालचन्द्रजी
आप आचार्य श्री विनयचन्द्रजी के सहयोगी संत थे। आपका जन्म वि० सं० १८९४ मार्गशीर्ष द्वितीया को पंजाब प्रान्त के सुनामनगर के वासी अग्रवाल जाति के श्री चूड़ामलजी गर्ग के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती सूवटा था। वि० सं० १९१७ में आप व्यापार के कार्य से मालवा पधारे जहाँ पूज्य मुनि श्री मेघराजजी के दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ। मुनि श्री के दर्शन करने और उपदेश सुनने से आपके मन में धर्म के प्रति अनुराग बढ़ता गया। आपके इसी अनुराग ने मुनि श्री के समक्ष यह भावना प्रकट करने के लिए प्रेरित किया कि मैं आगामी चातुर्मास में आपकी सेवा का लाभ लेना चाहता हूँ। मुनि श्री ने कहा-जैसी तुम्हारी इच्छा । मुनि श्री का आगामी चातुर्मास भेलसा में था। आप अपना सारा व्यापार समेटकर मुनि श्री की सेवा में भेलसा उपस्थित हो गये। आपके पिताजी ने जब आपके वैराग्य की बात सुनी तो स्वयं आकर आपको तरह-तरह से समझाया, किन्तु आपके वैराग्य भाव में तनिक भी कमी नहीं आई, अन्तत: पिताश्री ने दीक्षा की आज्ञा दे दी। इस प्रकार वि० सं० १९१९ कार्तिक शुक्ला द्वादशी को विशाल जनसमूह के बीच आपकी दीक्षा सम्पन्न हुई। दीक्षा ग्रहण करते ही आपने दूध, दही, मिष्ठान और तेल (चार विगय) का आजीवन त्याग कर दिया। प्रतिदिन पाँच उपवास आपका नियम बन गया था। आप कठोर से कठोर परीषह समताभाव से सहन करते थे। उल्लेख मिलता है कि आप ज्येष्ठ माह की प्रचण्ड सूर्य किरणों में आग के समान जलती तप्त पाषाण खण्ड को आँखों पर बाँध कर मध्याह्न के समय लेटे-लेटे आतापना लेते थे। पाषाण खण्ड पर लेटे-लेटे जब शरीर का निम्न भाग ठण्डा हो जाता तब आप करवट बदल लेते थे। इस प्रकार आप परीषह सहन करते थे। साथ ही आप कठिन से कठिन अभिग्रह भी धारण करते थे और तप प्रभाव से आपका अभिग्रह पूर्ण भी होता था, जैसे
१. ऐसा दम्पति जो चाँदी की कटोरी में दाल का हलुवा बहरावे तो पारणा करूँगा।
२. दीवान श्री नथमलजी गोलेछा अपनी मूंछ के दाहिने भाग के बाल बहरावे तो पारण करूँगा।
३. ऐसा व्यक्ति जिसने दूसरा विवाह किया हो, अक्षय तृतीया को शादी हुई हो और दम्पति प्रसन्नतापूर्वक स्वेच्छा से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया हो, यदि वैसा व्यक्ति बहरावे तो पारणा करूँगा। आपने दो व्यक्तियों को संयममार्ग पर दीक्षित किया। वि०सं० १९३८ में श्री हंसराजजी सिंघी को तथा वि० सं० १९५१ के चैत्र शुक्ला दशमी को जयपुर निवासी श्री सुजानमलजी पटनी को आपने दीक्षित किया। आपने अपने संयमपर्याय में ३६ चातुर्मास किये। अजमेर में-१७, नागौर में-४, पाली में-७ और जोधपुर मे-८। वि०सं० १९५४ के फाल्गुन में श्री चन्दनमलजी आपके
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