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मेड़ता
अजमेर
वि० सं० १७९५ १७९६ १७९७ १७९८ १७९९ १८०० १८०१ १८०२ १८०३ १८०४ १८०५ १८०६ १८०७ १८०८
स्थान सादड़ी किशनगढ़ खेजरले मेड़ता सिरियारी भीलवाड़ा ऊँटाला
मेड़ता
धर्मदासजी की पंजाब, मारवाड़ एवं मेवाड़ की परम्पराएं स्थान
वि०सं०
१८१५ सोजतनगर १८१६
१८१७ किशनगढ़ १८१८ सोजतनगर १८१९ जैतारण १८२० जैतारण १८२१ नागौर १८२२ जैतारण
१८२३
१८२४ नागौर १८२५ नीवाज जोधपुर
१८२७ जालौर नीवाज जैतारण
१८३० सिरियारी
१८३१ उदयपुर लांवा १८३३ राजनगर
१८३४ से १८४० तक स्थिरवास ।
जोधपुर
१८२६
तिवरी जालौर नीवाज बगड़ी रीयां जालौर नागौर पीपाड़
१८२८ १८२९
जोधपुर
१८१० १८११ १८१२ १८१३ १८१४
१८३२
पाली रीयां नागौर
आचार्य श्री गुमानचन्दजी
__ आचार्य कुशलोजी के बाद संघ का उत्तरदायित्व पूज्य श्री गुमानचन्दजी पर आ गया। गुमानचन्दजी का जन्म मारवाड़ के ऐतिहासिक नगर जोधपुर के वैश्य कुल की माहेश्वरी जाति में हुआ। आपके पिता का नाम श्री अखेराज लोहिया तथा माता का नाम चेनाबाई था। आप बाल्यावस्था से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। युवावस्था में ही आपकी माताजी का स्वर्गवास हो गया। अपनी माता की अस्थियाँ प्रवाहित करके अपने पिताश्री के साथ वापस लौट रहे थे। मार्ग में मेड़तानगर में रुके। मेड़तानगर में ही आचार्य कुशलोजी विराजित थे। पन्द्रह दिनों तक दोनों पिता-पुत्र पूज्य आचार्य श्री का प्रवचन सुनते रहे। प्रवचन सुनते-सुनते ही दोनों पिता-पुत्र के मन वैराग्य उत्पन्न हुआ और वि० सं० १८१८ मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी के दिन दोनों पिता-पुत्र ने
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