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धर्मदासजी की परम्परा में उद्भूत गुजरात के सम्प्रदाय मुनि श्री पुरुषोत्तमजी स्वामी
वि० सं० १९४३ में आपका जन्म हुआ। वि०सं० १९५८ में आप दीक्षित हुये। वि० सं० २०१३ कार्तिक तृतीया को आपका स्वर्गवास हुआ। पुरुषोत्तमजी स्वामी के पश्चात् श्री प्राणलालजी स्वामी, श्री रतिलालजी स्वामी, श्री जयन्तीलालजी स्वामी क्रमश संघ-संचालक हुये।
वर्तमान में गच्छ शिरोमणि मुनिश्री जयंतीलालजी श्रीसंघ के प्रमुख हैं। आपकी निश्रा में २० सन्त एवं २४७ सतियांजी हैं जो जैन धर्म-दर्शन की सेवा में संलग्न हैं। आपकी निश्रा में अधिष्ठित कुछ सन्तों के नाम इस प्रकार हैं - वाणीभूषण श्री गिरीशमुनिजी, श्री जसराजमुनिजी, आगमदिवाकर श्री जनकमुनिजी, श्री जगदीशमुनिजी, श्री हंसमुखमुनिजी, साहित्यप्रेमी श्री देवेन्द्रमुनिजी, श्री प्रकाशमुनिजी, तपस्वी श्री राजेन्द्रमुनिजी, श्री धीरजमुनिजी, तत्त्वचिन्तक श्री राजेशमुनिजी, शासनप्रभावक श्री नम्रमुनिजी, आदि।
* गोंडल संघाणी सम्प्रदाय 'स्थानकवासी जैन मुनि कल्पद्रुम' से ऐसा ज्ञात होता है कि पूज्य श्री डूंगरसीजी स्वामी के समय में ही श्री गांगजी स्वामी ने संघ से अलग होकर 'गोंडल संधाणी समुदाय की स्थापना की। श्री भागजी स्वामी के पाट पर श्री जयचंदजी विराजित हुये। श्री जयचंदजी की पाट पर श्री कानजी स्वामी आसीन हुये। इनके बाद की परम्परा ज्ञात नहीं है।
सम्प्रति वर्तमान में इस सम्प्रदाय में एकमात्र मुनिराज श्री नरेन्द्रमुनिजी संघप्रमुख के रूप में विद्यमान हैं। इस संघ में सतियों की संख्या ३४ है।
श्री वनाजी और उनका बरवाला सम्प्रदाय
पूज्य मूलचंदजी स्वामी के तीसरे शिष्य श्री वनाजी ही स्वामी बरवाला सम्प्रदाय के आघ प्रवर्तक हैं। श्री वनाजी स्वामी कई सन्तों के साथ वि०सं० १८४५ में बरवाला पधारे और वहीं संघ की स्थापना की, तब से बरवाला संघ अस्तित्व में आया। इस संघ के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी है, अत: आचार्य श्री हस्तीमलजी द्वारा लिखित 'जैन आचार्य चरितावली' के आधार पर आचार्य/पट्ट परम्परा प्रस्तुत की जा रही है
आचार्य श्री हस्तीमलजी के अनुसार श्री वनाजी स्वामी की पाट पर श्री पुरुषोत्तमजी स्वामी बैठे। श्री पुरुषोत्तमजी स्वामी के बाद श्री बनारसीजी स्वामी ने संघ की बागडोर संभाली। श्री बनारसीजी स्वामी के पश्चात् श्री कानजी स्वामी आचार्य
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