________________
२७२
स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास तदुपरान्त ३० दिन, ६१ दिन के भी तप किये। साथ ही अभिग्रह भी धारण कर लिया कि १०१ खंघ (ब्रह्मचर्य, चौविहार, हरितकाय का त्याग और सचित्त जल का त्याग) होंगे तो पारणा करूँगा। जब ५५ खंघ का योग मिला तब आपने ६१ मिलाकर ९१ दिनों की तपश्चर्या की। अभिग्रह सफल न होने पर मन में किये गये संकल्प के अनुरूप आपने अन्न जल का त्याग करते हुये यावत्जीवन छाछ ग्रहण करने का व्रत ले लिया।
वि० सं० १९६५ चैत्र पूर्णिमा से आपने दिन में न सोने, रात्रि में आड़ा आसन लगाने व औषध सेवन का त्याग कर दिया। इन नियमों के होते हुये भी आप एक मास एक दत्ति (दाँती), दूसरे मास दो दत्ति, छठे मास में छह दत्ति छाछ लेते थे और क्रमश: दत्तियों की संख्या कम करते-करते एक दत्ति पर आ जाते थे। आपने १६ वर्ष तक केवल छाछ के आधार पर ही संयम आराधना की । आपका प्रमुख विहार क्षेत्र मालवा ही रहा। १९ वर्ष तक संयमपालन करके वि० सं० १९७३ चैत्र अमावस्या के दिन संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री सुलतानऋषिजी
आपका जन्म अहमदनगर के आवलकुटी ग्राम के चंगेरिया गोत्रीय ओसवाल परिवार में हुआ। आपकी जन्म-तिथि व माता-पिता के नाम ज्ञात नहीं है। वि०सं० १९५५ वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को कड़ा में मुनि श्री रत्नऋषिजी के मुखारविन्द से आपने आर्हती दीक्षा ग्रहण की । अहमदनगर में आपका स्वर्गवास हुआ। स्वर्गवास तिथि उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री दगडूऋषिजी
आप मुनि श्री रत्नऋषिजी के शिष्य थे। वि० सं० १९५६ माघ शुक्ला त्रयोदशी के दिन आप दीक्षित हुये। आपके दीक्षा समारोह में मुनि श्री अमोलकऋषिजी उपस्थित थे। कर्नाटक, सोलापुर, अहमदनगर आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। आप द्वारा संग्रहीत 'श्रीरत्न अमोल मणि-प्रकाशिका' पुस्तक प्रकाशित है। सोलापुर में आपका स्वर्गवास हुआ। इसके अतिरिक्त कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री. उत्तमऋषिजी.
आपका जन्म वि० सं० १९६४ में अहमदनगर के चिंचपुर में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती चम्पाबाई और पिता का नाम श्री कुन्दनमलजी गूगलिया था। वि०सं० १९७७ से ही आप मुनि श्री रत्नऋषिजी की सेवा में रहकर शास्त्रों का अध्ययन करने लगे। वि० सं० १९७९ ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया के दिन आप गुरुवर्य मुनि श्री रत्नऋषिजी की निश्रा में दीक्षित हुये। दीक्षोपरान्त आपने संस्कृत व्याकरण, साहित्य, न्याय और आगमों का गहन अध्ययन किया। बरार, मध्यप्रदेश, खानदेश, महाराष्ट्र, मालवा, मेवाड़, मारवाड़, आदि प्रान्त आपके विहार स्थल रहे हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org