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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास आचार्य श्री मंगलऋषिजी.
आप मुनि श्री ताराऋषिजी के शिष्य थे । परम्परा से आप खम्भात शाखा के पाँचवें (पूज्य लवजीऋषिजी से) पट्टधर थे। आपने गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में जिनशासन के सिद्धान्तों को प्रचारित -प्रसारित कर जनमानस में नई चेतना का संचार किया। आपके जीवन के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती। आचार्य श्री रणछोडऋषिजी.
आप खम्भात शाखा के छठे पट्टधर थे । पूज्य श्री कहानऋषिजी के श्री चरणो में आपकी आर्हती दीक्षा हुई । आप स्वभाव से विनम्र, गम्भीर और सरल हृदय थे। गुजरात
और मालवा आपका विहार क्षेत्र था। आपके १४ शिष्य थे- श्री जोगराजऋषिजी, श्री रूप ऋषिजी, श्री धर्मऋषिजी, श्री गोविन्दऋषिजी, श्री मूलाऋषिजी, श्री धर्मदासजी, श्री तिलोकऋषिजी, श्री मीठाऋषिजी, श्री कृष्णऋषिजी, श्री श्यामऋषिजी, श्री शंकरऋषिजी, श्री मोहनऋषिजी, श्री बीकाऋषिजी और श्री भक्तिऋषिजी। आपके विषय में इसके अतिरिक्त कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आचार्य श्री नाथाऋषिजी
___ आप पूज्य रणछोड़दासजी के बाद खम्भात शाखा के सातवें पट्टधर हुए। इसके अतिरिक्त इनके सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। आचार्य श्री बेचरदासऋषिजी.
पूज्य रणछोड़दासजी के पश्चात् आप आठवें पट्टधर हुये। आचार्य श्री माणकऋषिजी.
___ पूज्य बेचरदासऋषि के पश्चात् नौवें पट्ट पर मुनि श्री माणकऋषिजी विराजित हुए। आपके विषय में भी अल्प जानकारी ही उपलब्ध होती है। आप इन्दौर निवासी थे और आपका स्वर्गवास वि०सं० १९२८ में खेड़ा (गुजरात) में हुआ। आचार्य श्री हरखचन्दजी (हर्षचन्दजी)
खम्भात सम्प्रदाय के दसवें पट्टधर के रूप में मुनि श्री हरखचन्दजी ने पूज्य पदवी धारण की। आप पंजाब के सिरसा के निवासी थे। दीक्षित होने से पर्व आपका नाम हुशानचन्द था। आप पाँच भाई थे। बड़े होकर व्यापार में लग गये। बम्बई जैसे शहर में आपका व्यवसाय था। कहा जाता है कि एक दिन आप बम्बई में किसी व्यक्ति को सिर पर मांस की टोकरी रखकर जाते हुए देखा और आपके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। अहमदाबाद में मुनि श्री माणकऋषिजी विराजित थे। अत: उनके सान्निध्य में आपने दीक्षा
१. ऋषि सम्प्रदाय का इतिहास, पृ०-८३
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