________________
धर्मदासजी की परम्परा में उद्भूत गुजरात के सम्प्रदाय भावसार श्री दामोदर भाई ने वि०सं० १८६७ फाल्गुन वदि प्रतिपदा दिन रविवार को दीक्षा ग्रहण की। इसी वर्ष वैशाख पंचमी दिन रविवार को कच्छ निवासी श्री भारमल भाई ने भी दीक्षा ग्रहण की। इसी प्रकार वि० सं० १८६९ कार्तिक वदि त्रयोदशी के दिन कच्छ निवासी श्री अविचलभाई, श्री हरमनभाई, रतनसीभाई, लघाभाई और श्री जयमल्लभाई इन पाँच भाईयों ने तथा कच्छ के ही श्री जेठीबाई, मोरवी के मोधीबाई आदि ने लीम्बड़ी में दीक्षा अंगीकार की। लीम्बड़ी में ही आपके सान्निध्य में वि०सं० १८६८ के चातुर्मास में ३९ मासखमण हये जिनमें २६ मासखमण स्थानकवासियों ने किये तथा १३ तपागच्छ के अनुयायियों ने । इनके अतिरिक्त १५, २० व ५४ के थोक उपवास भी हुए । वि०सं० १८६९ में आपका स्वास्थ्य प्रतिकूल हो गया, फलत: १८७० श्रावण वदि प्रतिपदा को रात्रि में आपने स्वर्ग की ओर प्रयाण किया। आपके पाँच प्रमुख शिष्य हये- श्री कचराजी स्वामी, श्री रवजी स्वामी, श्री नागजी स्वामी, श्री देवराजजी स्वामी और श्री भगवानजी स्वामी। अन्तिम समय में आपके ४२ शिष्य - शिष्यायें थीं। आपके जीवन से अनेक घटनायें जुड़ी हैं जिन्हें यहाँ विस्तारभय से प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। आचार्य श्री देवराजजी स्वामी
आपका जन्म वि० सं० १८३१ कार्तिक सुदि में कांडागरा (कच्छ) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री नागजीभाई देढ़िया था जो वीसा ओसवाल जाति के थे। वि० सं० १८४१ फाल्गुन सुदि पंचमी को आप दीक्षित हये। वि०सं० १८७० में आप गादी पर विराजित हुये और वि०सं० १८७५ पौष वदि पंचमी को लीम्बड़ी में आप आचार्य पद पर अधिष्ठित हुये। वि० सं० १८७९ में आसोज वदि प्रतिपदा की रात में जेतपुर (काठी) में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके पाँच शिष्य थे। शिष्यों के नाम उपलब्ध नहीं हैं। आपके प्रशिष्य हेमचन्द्रजी स्वामी ने अपने शिष्य गोपालजी स्वामी को साथ लेकर लीम्बड़ी गोपाल सम्प्रदाय की स्थापना की। आचार्य श्री भाणजी स्वामी
आपका जन्म वि० सं० १८४१ पौष सुदि में सौराष्ट्र के बांकानेर ग्राम के श्रीमाली परिवार में हुआ। वि० सं० १८५५ वैशाख सुदि एकादशी को चौदह वर्ष की उम्र में आप दीक्षित हुये। संघ के गादीपति के रूप में आप वि० सं० १८७९ में प्रतिष्ठित हुये। वि० सं० १८८० मार्गशीर्ष सुदि नवमी को लीम्बड़ी में आप आचार्य पद पर विराजित हुये। वि०सं० १८८७ वैशाख सुदि एकादशी को रामोद में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके सात शिष्य थे। श्री हरचन्द्रजी स्वामी
आपका जन्म वि०सं० १८५१ में मेथाणा (लीम्बड़ी) के वीसा श्रीमाली परिवार में हुआ। वि०सं० १८६६ मार्गशीर्ष सुदि पंचमी को आप दीक्षित हुए। वि० सं० १८८७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org