________________
२८०
स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास आत्मारामजी, श्री खोडाजी, श्री फूलचन्दजी आदि आपके शिष्य थे। वि०सं० १९८३ में आपको पाट पर विराजित किया गया। 'उत्तराध्ययन', 'दशवैकालिक', 'व्यवहारसूत्र', 'उपासकदशांग', 'बृहत्कल्पसूत्र' आदि पुस्तकें शब्दार्थ एवं भावार्थ के साथ आपने लिखी हैं जो प्रकाशित हो चुकी हैं। सामायिक-प्रतिक्रमण विवेचन सहित प्रकाशित है। गुजरात, काठियावाड़, बम्बई आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। वि०सं० १९८९ में अजमेर के बृहद् साधु सम्मेलन में आप पधारे थे। वि०सं० १९९४ का चातुर्मास अहमदाबाद में था। वि०सं० १९९५ का चार्तुमास-खम्भात में होना निश्चित हुआ, किन्तु शारीरिक अवस्था के कारण विहार न हो सका और वि० सं० १९९५ में वैशाख कृष्णा दशमी के दिन अहमदाबाद में ही आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री कांतिऋषिजी
आपका जन्म वि०सं० १९७२ आषाढ़ वदि त्रयोदशी दिन शुक्रवार को खम्भात में हुआ। कहीं कहीं आपकी जन्म-तिथि श्रावण वदि त्रयोदशी बतायी गई है। किन्तु यह वास्तविक अन्तर नहीं है क्योंकि मालव प्रदेश जिसे श्रावण वदि कहते हैं, उसे गुजरात में आसाढ़ वदि कहते हैं। आपके माता-पिता का नाम ज्ञात नहीं हो सका है। ६ वर्ष की उम्र में ही आपके पिताजी का देवलोक हो गया। अत: आप अपने नानाजी के यहाँ रहने लगे। १३१४ वर्ष की आयु से ही आपने प्रतिक्रमण, सामायिक, चौविहार, जमीकंद का त्याग आदि नियमों का पालन करना प्रारम्भ कर दिया था। कुछ वर्षों बाद आप गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे और पाँच पुत्र तथा दो पुत्रियों के पिता बने। गृहस्थ जीवन में ही आप व्यापार के साथसाथ श्री ‘दशवैकालिकसूत्र' और 'उत्तराध्ययनसूत्र' का अर्थों के साथ अभ्यास करते रहे। ४५ वर्ष की आय में अर्थात वि०सं० २०१७ में आपने आर्हती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपने पाथर्डी बोर्ड से आचार्य तक की परीक्षा उत्तीर्ण की। आपके दीक्षा गुरु का नाम उपलब्ध नहीं होता है। दीक्षा के दिन से ही आपने प्रतिवर्ष पोरसी व्रत तथा ८,१६ व २१ की तपस्या प्रारम्भ कर दी थी। अब तक आप १६ मासखमण कर चुके हैं। आपके संयमजीवन में तपस्या के दिन भी व्याख्यान, वाचना, प्रार्थना व रात्रि धर्म चर्चा आदि नियमानुसार चलते रहते हैं। ‘मानव जीवन नाना मूल्य', 'धर्म एटलेशं', समकितनुं मूल - श्री नवकार मन्त्रए सर्वधर्मनों सार', 'जीवन जीववानी कला', 'श्री उत्तराध्ययन' भाग १ से ३ (भावार्थ सहित) आदि पुस्तकों का गुजराती में एवं 'महामन्त्र नवकार', 'सर्वधर्म का सार' पुस्तक का हिन्दी में आपने संकलन किया गया है।
गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश , तमिलनाडू आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org