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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मुनि श्री हितेशऋषिजी, श्री लोकेशऋषिजी, मुनि श्री सुयोगऋषिजी, मुनि श्री रसिकऋषिजी, मुनि श्री पद्मऋषिजी, आदि मुनिराज विद्यमान हैं।।
ऋषि सम्प्रदाय के प्रभावी सन्त मुनि श्री सोमजीऋषिजी
आप पृथ्वीऋषि के शिष्य थे। आपका विहार क्षेत्र मालवा, मेवाड़ और गुजरात था। आप सहृदयी और मधुरभाषी थे। ज्ञान और चारित्र की वृद्धि करना ही आपके साधक जीवन का लक्ष्य था। आपके पाँच प्रमुख शिष्य थे- हीराऋषिजी, श्री स्वरूपऋषिजी, श्री डूंगाऋषिजी, श्री टेकाऋषिजी और शान्तिमूर्ति श्री हरखाऋषिजी। इसके अतिरिक्त आपके जीवन के विषय को कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री. भीमजीऋषिजी.
आप मुनि श्री पृथ्वीऋषिजी के सानिध्य में दीक्षित हुए। आपके जीवन से कई अद्भुत घटनाएँ जुड़ी हैं। आप एक उच्च कोटि के क्रियापात्र और घोर तपस्वी संत थे। मुख्य रूप से मालवा आपका विहार क्षेत्र रहा। आपके दो शिष्य थे- श्री टेकाऋषिजी और श्री कुँवरऋषिजी। मालवा में ही आप स्वर्गस्थ हुए। आपके सम्बन्ध में इतनी ही जानकारी मिलती है। मुनि श्री कुंवरऋषिजी.
आप श्री भीमऋषिजी के शिष्य थे। कठोर तपस्या ही आपके संयमी जीवन का लक्ष्य था। मुख्य रूप से सुजालपुर, शाजापुर, भोपाल आदि नगर आपके विहार क्षेत्र रहे। एक मास के संथारा के साथ शुजालपुर में आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री टेकाऋषिजी.
आप श्री भीमऋषिजी के शिष्य थे। तन, मन और वचन से संयम एवं तप की आराधना करना आपका जीवन-व्रत था। आप एक सेवाभावी सन्त थे। आप मालवा क्षेत्र में ही विचरे और मालवा में ही स्वर्गस्थ हुए। इसके अतिरिक्त कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री धनजीऋषिजी
आपका जन्म कहाँ और किसके यहाँ हुआ इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती है। हाँ! आप आचार्य श्री वसुऋषिजी के दो शिष्यों में से एक थे। आपके दूसरे गुरुभाई मुनि श्री पृथ्वीऋषिजी थे। आपकी दीक्षा-तिथि अनुपलब्ध है। ऐसी मान्यता है कि आपके समय में ऋषि सम्प्रदाय दो भागों में विभक्त हो गया था एक पक्ष पूज्य श्री धनजीऋषिजी की ओर था तो दूसरा पक्ष मुनि श्री पृथ्वीऋषिजी की ओर। अत: सन्त और सतियों के भी
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