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आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा
२६१ के पश्चात् नागपुर होते हुए कवर्धा में मुनि श्री कालूऋषिजी की सेवा में पधारे। वि० सं० २०११ व २०१२ का चातुर्मास क्रमश: रायुपर और बालाघाट में था। आगे की जानकारी उबलब्ध नहीं होती है। मुनि श्री. जसवन्तऋषिजी.
आप मुनि श्री रामऋषिजी के संसारपक्षीय भाई हैं। वि०सं० २००० में पूज्य श्री आनन्दऋषिजी की सेवा में रहते हुए बालमटकावली (अहमदनगर) में फाल्गुन शुक्ला चतुर्थी के दिन आप दीक्षित हुए और अपने लघुभ्राता मुनि श्री रामऋषिजी के शिष्य बने। आपकी दीक्षा के समय कोटा सम्प्रदाय की महासती श्री दयाकुंवरजी भी विराजमान थीं। आप सादड़ी बृहत् साधु सम्मेलन में विराजमान थे। वहाँ से मुनि श्री हरिऋषिजी के साथ कवर्धा के लिए विहार किया। वि०सं० २०१०, २०११, व २०१२ का आपका चातुर्मास क्रमश: जलगाँव, रायपुर व बालाघाट में हुआ। आगे की जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है। मुनि श्री सखाऋषिजी
आपका जन्म नासिक में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती सखूबाई तथा पिता का नाम श्री गणपतराव पटेल था। वि० सं० १९४९ में आप मुनि श्री सुखाऋषिजी के सम्पर्क में आये। उनके सारगर्भित उपदेशों को सुनकर आपके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ
और आप वि०सं० १९५४ मार्गशीर्ष शुक्ला त्रयोदशी के दिन शुजालपुर में मुनि श्री दौलतऋषिजी के समीप दीक्षित हुए। ३८ वर्ष संयमजीवन व्यतीत कर वि०सं० १९९२ में भुसावल में आपका स्वर्गवास हो गया। मालवा, मेवाड़, खानदेश, बरार, मध्यप्रदेश आदि प्रान्त आपका विहार क्षेत्र रहे हैं। आपके तीन शिष्य हुए मुनि श्री वृद्धिऋषिजी, मुनि श्री समर्थऋषिजी और मुनि श्री कान्तिऋषिजी। मुनि श्री वृद्धिऋषिजी
__ आपका जन्म खानदेश के वाकोद ग्राम के गोलेछा परिवार में हुआ था। वि०सं० १९८१ ज्येष्ठ कृष्णा एकादशी को आपने नागपुर में अपने प्रतिबोधक गुरुवर्य मुनि श्री देवजीऋषिजी से आर्हती दीक्षा अंगीकार की और मुनि श्री सखाऋषिजी की निश्रा में शिष्य बने। ऐसा उल्लेख मिलता है मिलता है कि दीक्षा के समय आपकी आयु ४० वर्ष थी। इसके आधार पर आपका जन्म वि० सं० १९४०-४१ के आस-पास माना जा सकता है।
आप एक उग्र तपस्वी के रूप में जाने जाते थे। दीक्षोपरान्त आप कभी-कभी बेले-बेले पारणा करते थे। प्रकीर्णक तपस्या के साथ-साथ आपने ३-४ मासखमण भी किये थे। पहुण (बरार) में आपने छह मास तक की तपस्या की थी। केवल छाछ पर आपने एक से छह मास तक की तपस्या की थी। गर्मी में दोपहर को घूप की आतापना लेना आपका रोज का नियम था। अजमेर में बृहत्साधु सम्मेलन के उपलक्ष्य में भी आपने
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