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आचार्य जीवराजजी और उनकी परम्परा
१. एक गाँव में एक चातुर्मास हो । २. एक गाँव में दो व्याख्यान न हो । ३. एक-दूसरे की आलोचना न की जाये।
४. एक सम्प्रदाय के सन्त दूसरे से मिलें । ५. यदि ठहरने की सुविधा हो तो एक साथ ठहरें ।
आपने अपने संयमजीवन में विपुल साहित्य का सृजन किया है। वि०सं० २०४९ चैत्र सुदि एकादशी अर्थात् ३अप्रैल १९९२ को आप स्वर्गस्थ हुए। आपके निम्न ग्यारह शिष्य प्रशिष्य हुये - श्री देवेन्द्रमुनिजी, श्री गणेशमुनिजी, श्री जिनेन्द्रमुनिजी, श्री रमेशमुनिजी, डॉ० राजेन्द्र मुनिजी, श्री प्रवीणमुनिजी, श्री दिनेशमुनिजी, श्री नरेशमुनिजी, श्री सुरेन्द्रमुनिजी, श्री शालिभद्रमुनिजी, श्री गीतेशमुनिजी आदि । उपाध्याय पुष्करमुनिजी की साहित्य सम्पदा
१९८१
१९८२
१९८३
१९८४
१९८५
१९८६
१९८७
१९८८
'श्रावक धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन', 'धर्म का कल्पवृक्ष : जीवन के आँगन में', 'जैनधर्म में दान : एक समीक्षात्मक अध्ययन', 'ब्रह्मचर्य विज्ञान : एक समीक्षात्मक अध्ययन’, ‘संस्कृति रा सुर', 'राम राज', 'मिनखपणा रौ मोल', 'पुष्कर सूक्ति कोश : एक दृष्टि', 'संस्कृति के सुर', 'धर्म और जीवन', 'महाभारत के प्रेरणा प्रदीप', 'विमल विभूतियाँ', 'वैराग्यमूर्ति जम्बूकुमार', 'ज्योतिर्धर जैनाचार्य', 'पुष्कर पीयूष', 'नेम वाणी', 'पुष्कर सूक्ति कोश', 'पुष्कर सूक्ति कलश', 'श्रीमद् अमरसूरि काव्यम' (संस्कृत), 'महावीर षट्कम्', 'गुरुदेव स्मृत्यष्टकम्', 'अहिंसाष्टकम्', ‘सत्यपञ्चकम्’, ‘जपपञ्चकम्', 'ब्रह्मचर्य पञ्चकम्', 'श्रावकधर्माष्टकम्', 'मौनव्रतपञ्चकम्', ‘भारतवर्षपञ्चकम्’, ‘ओंकार : एक अनुचिन्तन', 'साधना पाठ', 'श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र।' इनके अतिरिक्त उपाध्याय श्री ने ५०० से अधिक भजनों तथा २५-३० चरितकाव्यों की रचना की है। आप द्वारा आगमों पर आधारित एवं सम्पादित जैन कथाएँ १११ भागों में प्रकाशित हैं जिसके अन्तर्गत ९१४ कथाएँ संग्रहित हैं।
आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की सूची इस प्रकार है
वि०सं०
वि० सं०
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स्थान
समदड़ी
नान्देशमा
१९८९
१९९०
१९९१
१९९२
१९९३
१९९४
१९९५
१९९६
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१७३
सादड़ी
सिवाना
जालौर
सिवाना
खाण्डप
गोगुन्दा
स्थान
पीपाड़
भँवाल
ब्यावर
लीम्बड़ी
नासिक
मनमाड
कम्बोल
सिवाना
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