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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास अलवर, नागौर, जयपुर, जोधपुर, नाभा, नालागढ़, जंडयाला, दिल्ली, बड़ौदा रोहतक, स्यालकोट, बड़ौत में एक-एक चातुर्मास, जालन्धर, अमृतसर में दो-दो, मालेरकोटला में तीन और पटियाला में छ। श्री हरनामदासजी आपके शिष्य थे। मुनि श्री हरनामदासजी.
आपके माता-पिता, जन्म-स्थान, जन्म-तिथि, दीक्षा-तिथि, स्वर्गवास आदि की कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं होती है । आपके तीन शिष्य थे- श्री मायारामजी, श्री जवाहरलालजी और श्री शम्भुरामजी। मुनि श्री मायारामजी
आपका जन्म वि०सं० १९११ आषाढ़ कृष्णा द्वितीया (तदनुसार १२ जून १८५४) को बड़ौदा के चहलवंशीय श्री जीतरामजी नम्बरदार के यहाँ हुआ । आपकी माता का नाम श्रीमती शोभावती था । आप बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। बाल्यकाल से ही मुनि श्री गंगारामजी और मुनि श्री रतिरामजी का सान्निध्य मिला। प्रारम्भिक ज्ञान आपने इन्हीं मुनिद्वय से प्राप्त किया । आगम ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक गीत, पद, सज्झाय, ढाल आदि भी आपने सीखी। आपकी दीक्षा ग्रहण करने की भावना को मुनिद्वय यह कहकर टालते रहे कि अभी समय नहीं आया है । माता-पिता के विवाह के आग्रह को आपने नामंजूर कर दिया। ऐसा उल्लेख मिलता है कि १२ वर्ष की अवस्था में मनिद्वय ने आपको शास्त्रों का ज्ञान कराया । वि०सं० १९३४ में आप किसी सरकारी कार्यवश पटियाला गये। कार्य सम्पन्न होते-होते अंधेरा हो गया। वापस लौटने की संभावना नहीं रही। पटियाला में किसी संत की उपस्थिति की संभावना से मायारामजी ने किसी से पूछा तो पता चला कि मुनि श्री रामबख्शजी, मुनि श्री नीलोपदजी, मुनि श्री हरनामदासजी आदि पुरानी गुड़मंडी में विराजित हैं। आप वहाँ दर्शनार्थ गये और वहीं के होकर रहे गये । वि०सं० १९३४ माघ शुक्ला षष्ठी को मुनि श्री हरनामदासजी का शिष्यत्व स्वीकार करते हुये आपने आहती दीक्षा ग्रहण की । हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि में आपने अनेक चातुर्मास किये । आपके जीवनकाल में पंजाब सम्प्रदाय के चार आचार्य हुए- आचार्य श्री अमरसिंहजी, आचार्य श्री रामबख्शजी, आचार्य श्री मोतीरामजी और आचार्य श्री सोहनलालजी। आप आचार्य जी सोहनलालजी के समवयस्क थे । दीक्षा पर्याय में सोहनलालजी आपसे डेढ़ वर्ष बड़े थे। आपका संघ एवं समाज पर इतना प्रभाव था कि सभी आपको आदर और सम्मान देते थे। पंजाब मनि संघ का कोई भी संगठन या आचार विषयक निर्णय आपकी अनभिज्ञता में नहीं लिये जाते थे। आपके जीवन से सम्बन्धित अनेक घटनायें और प्रसंग हैं जिनका विस्तारभय से यहाँ वर्णन नहीं कर रहे हैं।
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