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वि० सं०
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१९८०
स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास
वि० सं०
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हींगनघाट
आचार्य आनन्दऋषिजी
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आपका जन्म वि०सं० १९५७ श्रावण शुक्ला प्रतिपदा को अहमदनगर जिलान्तर्गत चिंचोडी ग्राम में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती हुलासावाई व पिता का नाम श्री देवीचन्दजी गूगलिया था । वि० सं० १९६९ में आप मुनि श्री तिलोकऋषिजी के सम्पर्क में आये । मीरी चौमासे में ही आपने मुनि श्री तिलोकऋषिजी से प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल का थोकड़ा, सड़सठ बोल का थोकड़ा, स्तवन, संवाद आदि सीख लिया। मुनि श्री के सम्पर्क में रहते-रहते आपके मन में संसार के प्रति विरक्ति भाव का अंकुरण हुआ जिसने कुछ ही महीनों में वृक्ष का रूप ले लिया। फलतः वि० सं० १९७० मार्गशीर्ष नवमी दिन रविवार को बड़े समारोह में पारिवारिक जनों की उपस्थिति में आपने मुनि श्री रत्नऋषिजी
रायपुर
राजनांदगाँव
इतवारी (नागपुर)
सदर बाजार (नागपुर)
शिष्यत्व में दीक्षा अंगीकार की । दीक्षा के समय आपकी उम्र १३ वर्ष के लगभग थी। दीक्षोपरान्त आप श्री नेमीचन्द्रजी से मुनि श्री आनन्दऋषि हो गये। आपने विद्यावारीधि पं० राजधारीजी त्रिपाठी के निर्देशन में अनेक शास्त्रों का गहन अध्ययन किया, जैसे- 'सिद्धान्त
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