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________________ २४८ वि० सं० १९६४ १९६५ १९६६ १९६७ १९६८ १९६९ १९७० १९७१ १९७२ १९७३ १९७४ १९७५ १९७६ १९७७ १९७८ १९७९ १९८० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास वि० सं० स्थान आगर शाजापुर सारंगपुर गंगधार बड़ौदा Jain Education International शाजापुर भोपाल गंगधार भुसावल हींगनघाट बरोरा अमरावती सोनई बम्बई नासिक जलगाँव चाँदूरपुर १९८१ १९८२ १९८३ १९८४ १९८५ १९८६ १९८७ १९८८ १९८९ १९९० १९९१ १९९२ १९९३ १९९४ १९९५ १९९६ १९९७-९८ १९९९ स्थान नागपुर अहमदनगर भुसावल बरोरा नागपुर राजनांदगाँव For Private & Personal Use Only रायपुर नागपुर शुजालपुर भोपाल इन्दौर भुसावल नागपुर हींगनघाट आचार्य आनन्दऋषिजी 1 आपका जन्म वि०सं० १९५७ श्रावण शुक्ला प्रतिपदा को अहमदनगर जिलान्तर्गत चिंचोडी ग्राम में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती हुलासावाई व पिता का नाम श्री देवीचन्दजी गूगलिया था । वि० सं० १९६९ में आप मुनि श्री तिलोकऋषिजी के सम्पर्क में आये । मीरी चौमासे में ही आपने मुनि श्री तिलोकऋषिजी से प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल का थोकड़ा, सड़सठ बोल का थोकड़ा, स्तवन, संवाद आदि सीख लिया। मुनि श्री के सम्पर्क में रहते-रहते आपके मन में संसार के प्रति विरक्ति भाव का अंकुरण हुआ जिसने कुछ ही महीनों में वृक्ष का रूप ले लिया। फलतः वि० सं० १९७० मार्गशीर्ष नवमी दिन रविवार को बड़े समारोह में पारिवारिक जनों की उपस्थिति में आपने मुनि श्री रत्नऋषिजी रायपुर राजनांदगाँव इतवारी (नागपुर) सदर बाजार (नागपुर) शिष्यत्व में दीक्षा अंगीकार की । दीक्षा के समय आपकी उम्र १३ वर्ष के लगभग थी। दीक्षोपरान्त आप श्री नेमीचन्द्रजी से मुनि श्री आनन्दऋषि हो गये। आपने विद्यावारीधि पं० राजधारीजी त्रिपाठी के निर्देशन में अनेक शास्त्रों का गहन अध्ययन किया, जैसे- 'सिद्धान्त www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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