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________________ २४९ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा कौमुदी', 'जैनेन्द्र व्याकरण', 'शाकटायन व्याकरण', 'प्राकृत व्याकरण', 'साहित्य दर्पण', 'काव्यानुशासन', 'नैषधीयचरित' आदि। इनके अतिरिक्त साहित्यिक ग्रन्थ, स्मृतियों में 'अष्टादश स्मृति', न्याय में 'सिद्धान्त मुक्तावली' व छन्दशास्त्रों आदि का तलस्पर्शी अध्ययन किया। आगम ग्रन्थों का अध्ययन आपने अपने गुरुवर्य से किया। वि०सं० १९९९ में आचार्य श्री देवऋषिजी के सदर (नागपुर) में स्वर्गस्थ हो जाने पर माघ कृष्णा षष्ठी दिन बुधवार को पाथर्डी में आप ऋषि सम्प्रदाय के आचार्य पद पर विभूषित हुये। वि०सं० २००६ में ब्यावर में संघ एकता हेतु नौ सम्प्रदायों के संगठन का प्रयत्न किया गया जिसमें पाँच सम्प्रदायों ने एकता के सूत्र में बँधने के लिए अपनी सहमति प्रदान की । पाँचों सम्प्रदायों के मुनियों ने पदवियों का त्याग किया और मुनि श्री आनन्दऋषिजी को सभी सम्प्रदाय के मुनियों ने अपना आचार्य स्वीकार किया। इसी प्रकार वि०सं० २००९ में स्थानकवासी जैन समाज को सुसंगठित करने की दृष्टि से अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फरेंस के सदस्यों के अथक परिश्रम के परिणास्वरूप सादड़ी में एक विराट साधु सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें पंजाब, राजस्थान, मालवा, मेवाड़, मारवाड़, महाराष्ट्र आदि प्रान्तों के मुनिराजों ने भाग लिया। परिणामस्वरूप एक आचार्य के नेतृत्व में 'श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ' की स्थापना हुई। आप (मनि श्री आनन्दऋषिजी) इस संघ के प्रधानमंत्री बनाये गये। आचार्य श्री आत्मारामजी के स्वर्गवास के पश्चात् वि०सं० २०१९ में आप 'श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ' के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये। आचार्य पद चादर महोत्सव वि०सं० २०२१ में अजमेर में हुआ था। वि०सं० २०४९ (२८ मार्च सन् १९९२) में अहमदनगर में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके जीवन से अनेक चामत्कारिक घटनायें जुड़ी हैं जिनकी चर्चा विस्तारभय से नहीं की जा रही है । मालवा, मेवाड़, मारवाड़, महाराष्ट्र आदि आपके प्रमुख विहार क्षेत्र रहे हैं। आप एक उच्च कोटि के साहित्यसर्जक थे। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, मराठी, गुजराती, फारसी और अंग्रेजी आदि भाषाओं के आप मर्मज्ञ थे। आपने अनेक विशिष्ट ग्रन्थों का मराठी भाषा में रचना एवं अनुवाद किया है, जैसे- आत्मोन्नतिचा सरल उपाय,अन्य धर्मापेक्षा जैन धर्मातील विशेषता, वैराग्यशतक, जैनदर्शन आणि जैनधर्म, जैन धर्माविषयी अजैन विद्धानांचे अभिप्राय (दो भाग), उपदेश रत्नकोश, जैन धर्माचे अहिंसातत्त्व, अहिंसा आदि। इनके अतिरिक्त आपकी प्रेरणा एवं संयोजना से अनेक ग्रन्थों का प्रणयन भी हुआ है, जैसे- पूज्यपाद श्री तिलोकऋषिजी म० का जीवन चरित्र, पण्डितरत्न पूज्य श्री रत्नऋषिजी म० का जीवन चरित्र, श्रद्धेय श्री देवजीऋषिजी म० का जीवन चरित्र, ज्ञानकुंजर दीपिका, ऋषि सम्प्रदाय का इतिहास, अध्यात्म दशहरा, समाज स्थिति का दिग्दर्शन, सती शिरोमणि श्री रामकुंवरजी म० का जीवन चरित्र, विधवा विवाह मुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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