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________________ १९७३ २५० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास चपेटिका, सम्राट चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न, चित्रालंकार, काव्य: एक विवेचन आदि। इसके अतिरिक्त आपके प्रवचनों को संकलित करके अनेक भागों में प्रकाशित किया गया है। आपके शिष्यों के नाम हैं- मुनि श्री हर्षऋषिजी, मुनि श्री प्रेमऋषिजी, मुनि श्री मोतीऋषिजी, मुनि श्री हीराऋषिजी, मुनि श्री ज्ञानऋषिजी, मुनि श्री पुष्पऋषिजी, मुनि श्री हिम्मतऋषिजी, मुनि श्री चन्द्रऋषिजी, मुनि श्री कुन्दनऋषिजी, मनि श्री सज्जनऋषिजी, मुनि श्री प्रवीणऋषिजी, मुनि श्री आदर्शऋषिजी,मुनि श्री महेन्द्रऋषिजी, मुनि श्रीअक्षयऋषिजी, प्रशान्तऋषिजी, पद्मऋषिजी आदि। __ आपने अपने संयमपर्याय में ८० चातुर्मास किये जिनका विवरण निम्न प्रकार हैवि०सं० स्थान वि० सं० स्थान १९७१ मनमाड़ १९८८ बोदवड़ (खानदेश) १९७२ मासलगांव १९८९ प्रतापगढ़ वाधली १९९० मन्दसौर १९७४ म्हासा १९९१ पाथर्डी १९७५ वेलवंडी १९९२ पूना (खड़की) १९७६ आलकुटी १९९३ घोड़नदी (पूना) १९७७ अहमदनगर १९९४ बम्बई (काटावाड़ी) १९७८ पाथर्डी १९९५ बम्बई (घाटकोपर) १९७९ कलम (निजाम) १९९६ पनवेल (कुलावा) १९८० अहमदनगर १९९७ अहमदनगर १९८१ करमाला १९९८ १९८२ चाँदा १९९९ बाम्बोरी (अहमदनगर) १९८३ भुसावल २००० चाँदा (अहमदनगर) १९८४ हिंगनघाट २००१ जालना (निजाम) १९८५ २००२ अमरावती (बरार) १९८६ अमरावती २००३ बोधवड़ (खानदेश) १९८७ चान्दूर बाजार २००४ बेलापुर रोड बोरी नागपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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