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________________ वि० सं० २००५ २००६ २००७ २००८ २००९ ० आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा स्थान वि०सं० चिंचोड़ी २०१८ ब्यावर (राज.) २०१९ उदयपुर (मेवाड़) २०२० भीलवाड़ा (राज.) २०२१ नाथद्वारा (मेवाड़) जोधपुर (मारवाड़) बडी सादड़ी (मेवाड़) २०२४ बदनोर (मेवाड़) २०२५ प्रतापगढ़ (मालवा) शुजालपुर २०२७ पाथर्डी २०२८ बेलापुर (श्रीरामपुर) २०२९ बाम्बोरी २०३० २०२२ २०२३ २०१० २५१ स्थान आश्वी बम्बई (घाटकोपर) शाजापुर जयपुर (राजस्थान) दिल्ली (चाँ० चौक) लुधियाना (पंजाब) जम्मूतवी मालेरकोटला देहली (सब्जी मंडी) बड़ौत (उ.प्र.) कुशालपुरा शुजालपुर (म.प्र.) नागपुर (विदर्भ) २०११ २०१२ २०१३ २०१४ २०१५ २०२६ २०१६ २०१७ आगे की चातुर्मास सूची प्राप्त नहीं हो सकी है। प्रवर्तक श्री कुन्दनऋषिजी __ आपका जन्म अहमदनगर के मिरी ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री चन्दनमलजी मेहेरे तथा माता का नाम श्रीमती केशरबाई था। ९ मई १९६२ को मिरी ग्राम में ही आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषिजी के श्री चरणों में आपने आहती दीक्षा ग्रहण की। हिन्दी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी, आदि भाषाओं का आपको अच्छा ज्ञान है। १३ मई १९८७ के पूना सम्मेलन में आप श्रमण संघ के मंत्री पद पर नियुक्त हुये। १० जुलाई १९९४ को लुधियाना में आप संघ के प्रवर्तक पद पर सुशोभित हुये। दीक्षोपरान्त से आपने आचार्य श्री आनन्दऋषिजी के साथ सम्पूर्ण महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हिमाचलप्रदेश, जम्मू-काश्मीर आदि प्रान्तों में विचरण किया है। वर्तमान में आपकी नेत्राय में मुनि श्री आदर्शऋषिजी, मुनि श्री प्रवीणऋषिजी, मुनि श्री अक्षयऋषिजी, मुनि श्री प्रशान्तऋषिजी, मुनि श्री महेन्द्रऋषिजी, मुनि श्री प्रतापऋषिजी और मुनि श्री सज्जनऋषिजी, मुनि श्री विशालऋषिजी, मुनि श्री तारकऋषिजी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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