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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास का उपवास किया। छाछ के आधार पर ३१ दिनों की तपश्चर्या भी आपने की थी। वि० सं० १९९८ में ३८ घण्टे के संथारा के साथ मूनक में आपका स्वर्गवास हो गया। श्री बनवारीलालजी.
आपका जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के तीतड़वाड़ा ग्राम में वि०सं० १९२९ के मार्गशीर्ष मास में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री लखपतरायजी एवं माता का नाम नन्हीं देवी था। आपके दो पुत्र और एक पुत्री थी। एक दिन रात्रि में आप अपने परिवार को छोड़कर मूनक में विराजित मुनि श्री बघावारामजी के पास पहुँच गये। परिजनों को जब मालूम हुआ तो पीछे-पीछे वे सब भी मूनक पहुँच गये । अत: मुनि श्री बघावारामजी ने दीक्षा देने से इंकार कर दिया । बनवारीलालजी वापस आ गये। किन्तु पुन: वि०सं० १९५३ में घर से निकलकर मुनि श्री जवाहरलालजी के पास पहुँचे जो बेगू (उदयपुर) में विराजित थे। मुनि श्री ने दीक्षा के योग्य जानकर वि०सं० १९५३ मार्गशीर्ष कृष्णा द्वितीया को आपको दीक्षा प्रदान की। वि०सं० १९९२ में होश्यारपुर (पंजाब) में आपको गणावच्छेक (गण के प्रमुख) पद प्रदान किया गया। वि०सं० २००५ वैशाख शुक्ला पंचमी को आपने हमेशा के लिये पेय द्रव्य ग्रहण करने का व्रत ले लिया। वि०सं० २००५ माघ कृष्णा द्वितीया दिन रविवार को १.३० बजे ११ दिन के संथारा के साथ आपका स्वर्गवास हो गया।
आपके दो शिष्य हुए- श्री जीतमलजी और श्री टेकचन्दजी। मुनि श्री जीतमलजी के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है । श्री टेकचन्दजी
आपका जन्म वि० सं० १९६० में रोहतक के रिढ़ाना ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम लाला शीशरामजी जैन तथा माता का नाम श्रीमती नन्दीदेवी था। वि०संग १९८२ में हरियाणा के जीन्दनगर में आपकी दीक्षा हुई । आपके एक शिष्य हुए- श्री भागचन्दजी, जो हरियाणा के विढमड़ा ग्राम के निवासी थे । जाति से वे जाट थे। श्री हिरदुलालजी
आपका जन्म वि० सं० १९१५ वैशाख कृष्णा दशमी को बड़ौदा में हुआ था। वि०सं० १९५४ माघ कृष्णा द्वादशी को मुनि श्री मायारामजी के द्वारा आप दीक्षित हुए। ३२ वर्ष तक संयमपर्याय का पालन किया। वि०सं० १९८६ भाद्र मास में मूनक (पंजाब) में आपका स्वर्गवास हो गया। श्री मुलतानचन्दजी
आपका जन्म राजस्थान के बड़लू के ओसवाल परिवार में हुआ वि०सं० १९५६ में आप दीक्षित हुए । होश्यारपुर चातुर्मास में आप अस्वस्थ हो गये और १९६७
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