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आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा आपके सात शिष्य थे- श्री नानकचन्दजी, श्री देवीचन्दजी, श्री छोटेलालजी, श्री वृद्धिचन्दजी, श्री मनोहरलालजी, श्री कन्हैयालालजी और सुखीरामजी । मुनि श्री मायारामजी के सात शिष्यों में से तीन शिष्यों- श्री देवीचन्द्रजी, श्री मनोहरलालजी और श्री कन्हैयालालजी की शिष्य परम्परा नहीं चली।
वि०सं० १९६८ भाद्र शुक्ला दशमी की रात्रि में आपका स्वर्गवास हो गया। श्री जवाहरलालजी
___ आपका जन्म वि०सं० १९१३ ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी को बड़ौदा में हुआ। आपके पिताजी का नाम चौधरी श्री रामदयालजी तथा माता का नाम श्रीमती बदामोदेवी था । बचपन में आपके माता-पिता ने आपका विवाह कर दिया। गौना होना था, किन्तु आप दीक्षार्थ मुनि श्री मायारामजी के पास पहँच गये । अपने निर्णय पर अडिग रहने के कारण अन्तत: परिजनों ने दीक्षा की अनुमति दे दी । वि०सं० १९३६ मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी को पटियाला में मुनि श्री हरनामदासजी के श्री चरणों में आपने दीक्षा ग्रहण की । इस प्रकार मुनि श्री मायारामजी बाबा सहोदर के साथ-साथ गुरुभ्राता हो गये । आपकी योग्यता संयमनिष्ठा, अनुशासन आदि गुणों से प्रभावित होकर आपको गणावच्छेक जैसा शास्त्रीय पद दिया गया था। आपने मुनि श्री मायारामजी के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली आदि प्रान्तों में कई वर्षावास किये। इनके अतिरिक्त आपने स्वतंत्र रूप से भी चातुर्मास किये । वि०सं० १९८८ माघ कृष्णा चतुर्दशी को मूनक में समाधिपूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया।
आपके छ: शिष्य थे- श्री खुशीरामजी, श्री गणेशीलालजी, श्री बनवारीलालजी, श्री हिरदुलालजी, श्री मुलतानचन्दजी और श्री फकीरचन्दजी। गुप्त तपस्वी श्री शम्भुरामजी
आपका जन्म उत्तर प्रदेश के अमीनगर में हुआ। आपके पिता का नाम पं० सोहनलाल था । युवा होने पर आपका विवाह हुआ । कुछ समयोपरान्त पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, किन्तु उसे काल ने अपना ग्रास बना लिया। फलत: आपके मन में वैराग्य ने घर कर लिया। मन की शान्ति के लिए आप इधर-उधर भटकते रहे । वि०सं० १९४५ में पूज्य श्री हरनामदासजी के पास आपके मन को शान्ति मिली। उनके शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की और गुप्त रूप से तप-साधना करने लगे। जोधपुर में आप समाधिमरण को प्राप्त हुये । आपके जन्म एवं मरण की तिथि उपलब्ध नहीं होती है।
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