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आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा
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सम्प्रदायों से आदर एवं सम्मान प्राप्त हुआ। इसी प्रस्ताव के तहत ३२ सम्प्रदायों में विभक्त स्थानकवासी मुनियों का अजमेर में सम्मेलन हुआ जिसमें २६ सम्प्रदायों के मुनियों ने भाग लिया । छः सम्प्रदाय के मुनियों ने भाग नहीं लिया। किन छ: सम्प्रदायों के मुनियों ने सम्मेलन में भाग नहीं लिया इसकी कोई सूचना प्राप्त नहीं है। इस सम्मेलन में भाग लेनेवाले मुनियों की संख्या २३८ थी, ऐसा उल्लेख मिलता है। आप ज्योतिषशास्त्र के विशिष्ट ज्ञाता थे। जैनागमों के आधार पर आपने एक पत्री (पंचांग) बनायी थी, किन्तु कुछ कारणों से वह सर्वमान्य नहीं हो सकी।
स्थानकवासी समाज का यह प्रथम सम्मेलन इस अर्थ में सफल कहा जा सकता है कि इसने संघीय एकता के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया। सभी मतभेदों का निराककरण तो नहीं हो सका, किन्तु एक सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण हुआ और पारस्परिक आलोचना- प्रत्यालोचना की प्रवृत्ति में कमी आई। वस्तुत: यह सम्मेलन सादड़ी में वि०सं० २००९ में हुए सम्मलेन के लिए एक आधार बना। वि० सं० १९९२ में संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हो गया। आपने अपने जीवन में २२ वर्ष तक एकान्तर तप की साधना की। आपके बारह शिष्य हुये - गणावच्छेदक श्री गैंडेयरायजी, मुनि श्री बिहारीलालजी, मुनि श्री विनयचन्दजी, बहुश्रुत श्री कर्मचन्द्रजी, आचार्य श्री काशीरामजी, मुनि श्री ताराचन्द्रजी, मुनि श्री टेकचन्द्रजी, मुनि श्री लाभचन्दजी, मुनि श्री जमीतरायजी, मुनि श्री चिंतरामजी, मुनि श्री गोविन्दरामजी और . मुनि श्री रूपचन्दजी |
आपके नाम से अमृतसर में 'श्री सोहनलाल जैनधर्म प्रचारक समिति' का निर्माण हुआ जिसके अन्तर्गत ई० सन् १९३७ में वाराणसी में 'पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान' की स्थापना हुई, जो वर्तमान में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के नाम से अनवरत विकास की ओर गतिशील है । इस शोध संस्थान से अब तक लगभग ६५ विद्यार्थी पी०-एच०डी० की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं, १६५ शोध ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है । पाँच एकड़ के सुरम्य भूमिखण्ड में स्थित यह जैनविद्या के उच्चतम अध्ययन की प्रथम संस्था है ।
आचार्य श्री काशीरामजी
आचार्य श्री सोहनलालजी के पश्चात् स्थानकवासी पंजाब सम्प्रदाय में आचार्य पद पर बैठनेवाले मुनि श्री काशीरामजी थे । श्री काशीरामजी का जन्म पंजाब के स्यालकोट के पसरुर नगर में वि०सं० १९४१ आषाढ़ कृष्णा अमावस्या दिन सोमवार को हुआ । पिता का नाम श्री गोविन्दशाह और माता का नाम श्रीमती राधादेवी था | आप छः भाई थे । तीन आपसे बड़े थे और दो छोटे । मुनि श्री जीतरामजी और मुनि श्री गैंडयेरायजी के सान्निध्य में आपने संसार की असारता को जाना और आपकी जीवन दिशा बदल गयी है। माता-पिता आपको विवाह बन्धन में बाँधना चाहते थे किन्तु
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