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आचार्य जीवराजजी और उनकी परम्परा
उपाध्याय पुष्करमुनिजी की शिष्य परम्परा
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आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी 'शास्त्री'
आपका जन्म वि०सं० १९८८ कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी (धनतेरस) तदनुसार ७ नवम्बर १९३१ दिन शनिवार को उदयपुर में हुआ था । कहीं-कहीं ८ नवम्बर १९३१ भी मिलता है । नाम धन्नालाल रखा गया। आपके पिता का नाम श्री जीवनसिंहजी बरड़िया और माता का नाम श्रीमती तीजकुंवर था। आपके जन्म के कुछ ही दिन पश्चात् (२८-१११९३१) आपके पिता देवलोक हो गये । तदुपरान्त आप अपनी मौसी के यहाँ रहने लगे। १० वर्ष की आयु में १ मार्च १९४१ दिन शनिवार को उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी के कर-कमलों में उदयपुर में आपने भागवती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आप धन्नालाल से श्री देवेन्द्रमुनिजी हो गये । आपकी दीक्षा के पश्चात् उसी वर्ष आषाढ़ शुक्ला तृतीया को आपकी माताजी श्रीमती तीजकुंवरजी (महासती श्री प्रभावतीजी) ने भी भागवती दीक्षा ग्रहण की। आपकी दीक्षा से पूर्व आपकी बहन (महासती श्री पुष्पवतीजी) ने भी दीक्षा ग्रहण की थी । आप (श्री देवेन्द्रमुनिजी) बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, पालि, गुजराती, अंग्रेजी, राजस्थानी आदि भाषाओं पर आपका समान अधिकार था। आगमशास्त्रों का आपको तलस्पर्शी ज्ञान था । १३ मई १९८७ को पूना सम्मेलन में आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषिजी द्वारा आप संघ के उपाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किए गए। ७ मई १९९२ को सोजत शहर ( राज० ) में २५० साधु-साध्विओं की उपस्थिति में आपको श्रमण संघ का आचार्य पद प्रदान किया गया और २८ मार्च १९९३ को उदयपुर में आचार्य पद चादर महोत्सव हुआ। २२ अप्रैल १९९४ को सामूहिक दीक्षोत्सव (११ दीक्षाएँ) पर आपको ‘आचार्य सम्राट' विभूषण से विभूषित किया गया। अम्बाला में आपको 'जैनधर्म दिवाकर' अलंकरण से अलंकृत किया गया। आपने कुल ५८ चातुर्मास किये। आप श्री की साहित्य सेवा अनुपम है। आप श्री की साहित्य सेवा को देखकर आचार्य सम्राट आनन्दऋषिजी ने आपको श्रमण संघीय 'साहित्य शिक्षण सचिव' पद प्रदान किया था । समग्र जैन समाज में आप ही एकमात्र ऐसे आचार्य हैं जिन्होंने सर्वाधिक साहित्य की रचना की है। आप सिद्धहस्त लेखक के साथ-साथ तेजस्वी प्रवचनकार भी थे। आपकी प्रवचनकला अद्भुत और आकर्षक थी । २६ अप्रैल १९९९ को घाटकोपर (मुम्बई) में आपका स्वर्ग के लिए महाप्रयाण हुआ। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं।
आचार्य देवेन्द्रमुनिजी द्वारा रचित साहित्य
कहानी साहित्य - 'बुद्धि के चमत्कार', 'बिन्दु से सिन्धु', 'महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ', 'चमकते सितारे', 'कुछ मोती कुछ हीरे', 'बोलती तस्वीरें', 'धरती के फूल', 'गागर में सागर', 'पंचामृत', 'अतीत के चलचित्र', 'खिलते फूल', 'शाश्वत
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