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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास के साथ-साथ प्रवर्तक श्री फतेहलालजी के भी नाम का भी उल्लेख मिलता है, किन्तु साक्ष्यों के अभाव में यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि दोनों में पूर्ववर्ती कौन थे अथवा दोनों ही संघ प्रमुख थे। आचार्य श्री छगनलालजी
___ आपका जन्म वि०सं० १९४६ श्रावण पूर्णिमा को पर्वतसर के सन्निकट पपिलाद नामक ग्राम में हुआ था । आपके पिता का नाम चौधरी श्री तेजरामजी व माता का नाम श्रीमती यमुना देवी था। आपके बचपन का नाम मांडूसिंह था। १४ वर्ष की आयु में वि०सं० १९६० वैशाख शुक्ला तृतीया को राजस्थान के शेरसिंहजी की रीयां नामक ग्राम में आचार्य श्री रंगलालजी के कर-कमलों में आपने भागवती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपने जैनागमों व वैदिक साहित्य का तलस्पर्शी अध्ययन किया। अपने संयमजीवन में आपने बेला, तेला आदि व्रतों के साथ-साथ १५-१५ दिन के व्रत भी किये और ४० वर्षों तक एक ही सूती चादर में आपने अपना संयमी जीवन व्यतीत किया। इसके अतिरिक्त आहार चर्या में आप प्रतिदिन दो विगयों का त्याग कर देते थे। वि०सं० १९८९ चैत्र कृष्णा दशमी के दिन अजमेर में अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन मुनि का सम्मेलन हुआ। लगभग १५० मुनिवृन्दों तथा ३०० से अधिक सतिवृन्दों ने सम्मेलन में उपस्थित होने की स्वीकृति दी थी। पूज्य स्वामीदास सम्प्रदाय से आपने इस सम्मेलन में भाग लिया था। श्री ज्ञानमुनिजी द्वारा लिखित पुस्तक 'साधना के अमर प्रतीक' के पृष्ठ संख्या-२२६ पर ऐसा उल्लेख है कि सम्मेलन में संवत्सरी को लेकर उठे विवाद को निपटाने के लिए आपने ७० मनिराजों के स्वीकारात्मक हस्ताक्षर करवाये थे। इस सम्मेलन में आपको संघ के मंत्री पद पर नियुक्त किया गया, किन्तु कुछ वर्षों पश्चात् आपने मंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया। वि०सं० २०२८ चैत्र शुक्ला द्वितीया दिन रविवार को लुधियाना के खन्ना कस्बे में आप स्वर्गस्थ हुये। आपके तीन प्रमुख शिष्य हुये- मुनि श्री टीकमचन्दजी, मुनि श्री गणेशीलालजी और मुनि श्री रोशनलालजी। आप आचार्य छगनलालजी द्वारा किये गये चातुर्मासों का विवरण इस प्रकार हैवि० सं० स्थान
वि०सं०
स्थान १९७५ सादड़ी धानेराव १९८२
भीलवाड़ा १९७६ ब्यावर १९८३
पाली १९७७ आगरा १९८४
किशनगढ़ १९७८ दिल्ली १९८५
शाहपुरा १९७९ किशनगढ़
१९८६
पाली १९८० पाली १९८७
पीपाड़ १९८१ शाहपुरा
१९८८
मसूदा
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